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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...255 यह उल्लेखनीय है कि योगवहन के सभी दिनों में पवेयणा विधि होती है तथा यह नन्दी और आगमसूत्रों के उद्देशक आदि की क्रिया पूर्ण होने के तुरन्त बाद की जाती है।
विधिमार्गप्रपा के अनुसार उद्देशक के अनन्तर दो खमासमण पूर्वक वंदन करके वाचना ग्रहण करने की और दो खमासमण पूर्वक वंदन करके बैठने की अनुमति लेनी चाहिए तथा अनुज्ञा के अनन्तर पवेयणा विधि करनी चाहिए। इससे स्पष्ट है कि अंग-श्रुतस्कन्ध-अध्ययन-वर्ग-शतक आदि के उद्देशकों की अनुज्ञा प्राप्त होने के पश्चात ही उसका प्रवेदन किया जाता है।
नियम से पवेयणा की क्रिया कालग्राही, कृतयोगी या प्रज्ञावान योगवाही मुनि द्वारा की जानी चाहिए, शेष योगवाही सुनते हैं। किन्तु विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों में इसके विषय में स्पष्ट निर्देश नहीं है।
विधिमार्गप्रपा के अनुसार पवेयणा विधि इस प्रकार है 76- सर्वप्रथम वसति का संशोधन करें। उत्तम स्थान पर स्थापनाचार्य को स्थापित करें। फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें।
योगवाही- खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! वसहि पवेउं? गुरु-पवेयह, इच्छं। खमा. भगवन्! सुद्धा वसहि। गुरु- तहत्ति।
योगवाही- खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं? गुरु- पडिलेहेह, इच्छं। मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर द्वादशावर्त वन्दन करें।
योगवाही- खड़े हुए इच्छा. संदि. भगवन्! पवेयणा पवेडे? गुरुपवेयह इच्छं।
योगवाही- खमा. इच्छा. संदि. भगवन! बहुवेलं संदिसावेमि। इच्छं, खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! बहुवेलं करेमि का आदेश लें।
योगवाही- खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झायं संदिसावेमि। इच्छं, खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झायं करेमि का आदेश लें। ___ योगवाही- खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! बइसणं संदिसावेमि, इच्छं। । खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! बइसणं ठामि का आदेश लें। स्वाध्याय ग्रहण
योगवाही- खमा.- इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झाउ पाठविसहं- हे भगवन्! आपकी अनुमति से स्वाध्याय का पाठ प्रारम्भ करते हैं।