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252... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
पाटली स्थापन- फिर नीचे बैठकर पाटली, मुखवस्त्रिका (25 बोल), दो डंडी (10 बोल) एवं तगडी (4 बोल पूर्वक) की प्रतिलेखना करें। फिर पाटली के ऊपर मुखवस्त्रिका रखें, मुखवस्त्रिका के ऊपर दंडियों को पृथक-पृथक रखें। फिर एक नमस्कार मन्त्र का स्मरण करके बैठे हुए और एक नमस्कार मन्त्र द्वारा खड़े हुए पाटली की स्थापना करें। फिर काल प्रवेदक मुनि एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. वसहि पवेडं ? गुरु - पवेयह, इच्छं । पुनः खमासमण देकर कहे - सुद्धावसहि । गुरु- तहत्ति ।
उसके पश्चात ‘इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए' बोलते हुए नीचे बैठकर एवं आगे की दंडीधर की सावधानीपूर्वक प्रमार्जना कर अंगुली एवं अंगूठे से उठाये और मन में 'मत्थएण वंदामि' कहकर 10 बोल से दंडीधर की प्रतिलेखना करें। फिर काल थापुं ? इस तरह का मानसिक संकल्प करते हुए स्वयं की बायीं ओर पाटली के समीपवर्ती भूमि पर उसे स्थापित करें। फिर बैठे हुए एक परमेष्ठी मन्त्र द्वारा पाटली और एक परमेष्ठी मन्त्र द्वारा नीचे की दंडीधर तथा खड़े हुए एक परमेष्ठी मन्त्र का स्मरण कर पाटली एवं दंडीधर दोनों की युगपद स्थापना करें।
काल प्रवेदन- तदनन्तर योगवाही मुनि एक खमासमण देकर कहेंइच्छा. संदि. पाभाइय काल पवेडं ? गुरु- पवेयह, इच्छं । पुनः एक खमासमण देकर कहें- इच्छकारी साहवो पाभाइकाल सुज्झे? गुरु एवं सभी योगवाही कहे - सुज्झे । फिर प्रवेदन करने वाला मुनि कहें- भगवन्! मु पभाइकाल सुद्ध कहे। उसके बाद व्याघातिक, अर्द्धरात्रिक और वैरात्रिक काल ग्रहण किये हों तो उस क्रम से कालप्रवेदन करें। फिर एक खमासमण देकर अविधि आशातना का मिच्छामि दुक्कडं दें। फिर दाहिने हाथ को स्वयं की ओर रखते हुए एक नमस्कार मन्त्र गिनकर पाटली का उत्थापन करें।
समीक्षा - वसति शुद्धि एवं काल शुद्धि का गुरु के समक्ष निवेदन करना वसति-काल प्रवेदन कहलाता है। यदि इस विधि के विकास क्रम पर विचार किया जाए तो इसका प्रारम्भिक स्वरूप व्यवहारभाष्य में मिलता है |58 इसमें गुरु के समक्ष शुद्धकाल का निवेदन करें, इतना मात्र ही सूचन है। इसके अनन्तर तिलकाचार्य सामाचारी 9, सुबोधासामाचारी, 70
प्राचीनसामाचारी, 71