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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...251 सूझइ?- भगवन् आपकी इच्छा से योगवाही तपस्वी मुनियों के लिए क्या वसति शुद्ध है? तब वसति शोधन करने वाला मुनि बोलें- 'सुज्झइ'- वसति शुद्ध है। फिर सभी योगवाही 'वसति शुद्ध है' इसका प्रवेदन करें। इसी तरह कालग्राही काल शुद्धि का प्रवेदन करें।
कालप्रवेदन- सभी योगवाही एक खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन करके कहें- इच्छकारि तपसियहु कालो सूझइ?- हे भगवन्! आपकी अनुमति से मैं पूछता हूँ कि योगवाही मुनियों के लिए क्या स्वाध्याय काल शुद्ध है? तब दंडीधर बोले- सूझइ - योगवाही मुनियों के लिए अब स्वाध्याय काल शुद्ध है।64
• आचारदिनकर के मतानुसार कालग्रहण की क्रिया निष्पन्न हो जाने पर कालग्राही प्रतिक्रमण करें। • फिर प्रतिलेखना का समय होने पर अंग प्रतिलेखना एवं उपधि प्रतिलेखना करें। • फिर उपाश्रय की चारों दिशाओं में सौ-सौ कदम तक की भूमि का प्रमार्जन करें। उस भूमि क्षेत्र में अस्थि, चर्म आदि हों तो शुद्धि करवाएं। . फिर कालग्राही वसति में आकर गमनागमन में लगे दोषों से निवृत्त होने के लिए ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें।
• फिर खमासमणसूत्र से वन्दन करके कहें- 'भगवन् वसहिं पवेएमि'हे भगवन्! मैं वसति का प्रवेदन करूं? फिर खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करके कहें- 'वसही सुज्झई' - हे भगवन्! वसति निर्दोष (शुद्ध) है। फिर खमासमण देकर कहे- 'भगवन्! पाभाइअ कालं पवेएमि'- हे भगवन्! मैं प्रभातकाल का प्रवेदन करूँ? पुन: वंदन करके कहें। 'भगवन् पाभाइयकालो सुज्झइ'हे भगवन्! स्वाध्याय हेतु प्रभातकाल निर्दोष है। फिर गुरु, योगवाही और अन्य मुनिगण स्वाध्यायार्थ स्थापनाचार्य के सम्मुख जाएं। यह कालग्रहण करने वाले मुनि का नित्यकर्म बतलाया गया है।65
तपागच्छ आदि कुछ परम्पराओं में वसतिकाल प्रवेदन की विधि इस प्रकार है-66
वसति प्रवेदन- काल प्रवेदन67 करने वाला मुनि या योगवाही कालिक अनुष्ठान कराने वाले आचार्य या पदस्थ मुनि के आगे स्थापनाचार्य को खुला रखें। फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन्! वसहि पवेउं? इच्छं। पुन: खमासमण देकर कहें- भगवन्! सुद्धावसही। गुरु- तहत्ति।