SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...249 की भूमि का प्रमार्जन कर, दोनों पाँव उस भूमि पर स्थित कर शेष छह बोलपूर्वक दोनों पैरों की प्रमार्जना करें, बाएँ हाथ के आस-पास तीन बार प्रतिलेखना करें, दायीं साथल को तीन बार प्रमार्जित कर वहाँ रजोहरण रखें। तत्पश्चात रजोहरण की दसीओं पर दायें हाथ को तीन बार घर्षण सहित सीधा-उल्टा करें। फिर दोनों हाथों का संपुट बनाकर पूर्ववत तीसरी बार तीन कालमांडला करें। • तदनन्तर दाएँ हाथ में रजोहरण लेकर बाएँ घुटने का प्रमार्जन करें। फिर भूमि प्रमार्जित कर घुटने को स्थिर करें। फिर बाएँ हाथ की तीन बार प्रतिलेखना कर रजोहरण से दंडीधर सहित बायीं तरफ का कटिभाग और मुखवस्त्रिका सहित दायीं तरफ का कटिभाग तीन बार प्रतिलेखित करें। उसके पश्चात दंडीधर और मुखवस्त्रिका को दोनों हाथों से एक साथ निकालें। फिर रजोहरण से 10 बोलपूर्वक दंडीधर की प्रतिलेखना करें तथा दांडीधर के बाएं हाथ को प्रमार्जित कर दण्डी उसके हाथ में अर्पित करें। फिर एक नमस्कार मंत्र का स्मरण कर दंडीधर की स्थापना करें। फिर पैरों के पृष्ठ भाग की भूमि का प्रमार्जन कर वहाँ खड़ा हो जाए। तदनन्तर 1. रजोहरण की दसीया 2. रजोहरण बांधने का दोरा 3. मुखवस्त्रिका का पल्ला 4. चोलपट्ट का पल्ला और 5. कंदोरा- इन पाँच वस्तुओं को सम्मिलित कर दाएँ हाथ को दाएँ पाँव के मध्य लेकर 'निसीहि नमो खमासमणाणं' कहते हुए खड़ा हो जाए। दांडीधर भी कालग्राही के साथ ही खड़ा हो जाए।62 __समीक्षा- यदि तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो दिगम्बर ग्रन्थों में भी कालग्रहण की अवधारणा स्पष्टत: परिलक्षित होती है। मूलाचार में कहा गया है कि प्रादोषिक, वैरात्रिक एवं गौसर्गिक (दिवस का पूर्वाह्न काल और अपराह्न काल) तथा रात्रि का पूर्वकाल और अपरकाल इन चारों कालों में निरन्तर स्वाध्याय करना चाहिए। मूलाचार टीका के अनुसार रात्रि का पूर्वभाग प्रादोषिक, रात्रि का पश्चिम भाग वैरात्रिक एवं गायों के निकलने का समय गौसर्गिक कहलाता है। मूलाचार (270 की टीका) में प्रदोष के समय दो कालग्रहण करने का निर्देश है और उक्त चारों कालों में स्वाध्याय करने का भी उल्लेख है।63 इस वर्णन का भावार्थ यह है कि चौबीस मिनट की एक घड़ी होती है और दो घड़ी में अड़तालीस मिनट होते हैं। सूर्योदय के अड़तालीस मिनट बाद से
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy