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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...247
आकार में दोनों हाथों के अंगूठों के द्वारा क्रमश: नासिका का, दाएँ कान का और बाएँ कान का तीन बार संस्पर्श करें। . फिर दोनों हाथों को ऊपर नीचे करते हुए एक के बाद एक ऐसे तीन बार आवर्त के द्वारा भूमि का स्पर्श करें। • फिर दाएँ हाथ में गृहीत रजोहरण से कालमण्डल में स्थित बाएँ हाथ की अंगुली और अंगूठे के बीच में तीन बार प्रमार्जन करें। • फिर बाएँ घुटने से कालमण्डल का स्पर्श करें, फिर दण्डधर कालदण्डी का प्रतिलेखन करके उसे कमर में रखें। इस प्रकार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना के पूर्व तीन बार कालमण्डल की प्रतिलेखना करके और एक नमस्कार मंत्र बोलकर डंडी दण्डधर के हाथ में दी जाए।61
तपागच्छ आदि प्रचलित परम्पराओं में कालमंडल प्रतिलेखन की विधि निम्न प्रकार है
• कालग्राही कालमण्डल में प्रवेश कर दण्ड के समक्ष ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। फिर कालग्राही और दंडधर संडाशक स्थानों की प्रमार्जना कर उकडु आसन में बैठ जाएं। • फिर कालग्राही दाएँ पाँव के ऊपर रजोहरण रखें और अनुमति लिए बिना (44 बोल पूर्वक) मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। • फिर मुखवस्त्रिका से बायें हाथ की तीन बार प्रतिलेखना करें एवं भूमि का प्रमार्जन कर बायां हाथ प्रमार्जित भूमि क्षेत्र में रखें और अंगूठा ऊँचा रखें। • उसके बाद मुखवस्त्रिका से तीन बार दायीं तरफ का कटिभाग प्रतिलेखित कर वहाँ मुखवस्त्रिका को स्थिर करें। • तदनन्तर दाएँ हाथ में रजोहरण लेकर बाएँ पाँव की (छह बोलपूर्वक) प्रतिलेखना करें। • फिर रजोहरण से बाएँ हाथ के आसपास प्रदक्षिणावर्तपूर्वक तीन बार प्रमार्जन करें, फिर दायीं साथल को तीन बार प्रमार्जित कर उस पर रजोहरण रखें।
- • तत्पश्चात रजोहरण की दसिओं के ऊपर दाएँ हाथ की हथेली को तीन बार घर्षण सहित उलट-पुलट करें। फिर दोनों हाथों का संपुट कर, अंगुष्ठों को संयोजित कर एवं मस्तक नीचे झुकाकर उससे नासिका, दाएं कान और बाएं कानों का तीन बार स्पर्श करवायें। फिर दोनों हाथों की हथेलियों को भूमि पर तीन बार उलट-पुलट करते हुए धीरे से घिसें। पुन: पूर्ववत अंगुष्ठ से नासिका
और दोनों कानों का तीन बार स्पर्श करें तथा दोनों हाथों को तीन बार भूमि पर उलट-पुलट (सीधा-उल्टा) करते हुए घिसें- यह प्रक्रिया कुल तीन बार करें।
• तदनन्तर दायाँ हाथ ऊपर करें, बायाँ हाथ भूमि पर पूर्ववत स्थिर करें।