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246... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
इसे गुरुमुख से सीखनी चाहिए। तिलकाचार्य सामाचारी, आचार दिनकर एवं तपागच्छ आदि परम्परा के ग्रन्थों में यह विधि अपनी-अपनी सामाचारी के अनुसार उल्लिखित है। प्रस्तुत अध्याय में आचारदिनकर (खरतर
परम्परा) एवं तपागच्छ परम्परा के अनुसार कालप्रेक्षाविधि वर्णित की गई है। 5. उपर्युक्त ग्रन्थों में कुछ आलापक पाठों में भी साम्य-वैषम्य है जैसे कि
सुबोधासमामाचारी55 एवं प्राचीनसामाचारी56 में यह पाठ है- असज्ज-3 निसीहि-3 नमो खमासमणाणं। विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर68 में उक्त पाठ सामान्य अन्तर के साथ इस प्रकार है- असज्ज-3 निसीहि-3 नमो खमासमणाणं। तिलकाचार्यसमाचारी59 एवं प्रचलित तपागच्छ आदि परम्पराओं में यह पाठ मिलता है- असज्ज-3 निसीहि-3 नमो खमासमणाणं। इस तरह किंचिद् मतभेद है। 6. नियमत: कालग्रहण सम्बन्धी अनुष्ठान कालमंडल और स्थापनाचार्य
मंडल- इन दो स्थानों पर निष्पन्न होता है। विधिमार्गप्रपा आदि मूलग्रन्थों में इन शब्दों का उल्लेख है किन्तु तपागच्छ आदि की संकलित कृतियों में इन शब्दों का अभाव है। उनमें पाटली, दिशा आदि का निर्देश है। शेष
विधि लगभग समान है।60 कालमंडल प्रतिलेखन विधि
आचारदिनकर में हाथ परावर्तनपूर्वक कालमंडल प्रतिलेखन की विधि इस प्रकार निर्दिष्ट है
कालग्राही कालमण्डल में आकर दण्ड के आगे ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। • तत्पश्चात रजोहरण की दसिओं का प्रतिलेखन करके बैठ जाएँ। फिर रजोहरण का तीन बार प्रतिलेखन करें। . उसके बाद गुरु परम्परागत शुद्ध विधि से रजोहरण के द्वारा तीन बार काल पाटली का प्रतिलेखन करें। • फिर कालमण्डल में दाएँ पैर के ऊपर रजोहरण को स्थापित करके मुखवस्त्रिका से शरीर के ऊपर भाग की प्रतिलेखना करें। • फिर बाएँ हाथ से कालमण्डल का स्पर्श करके दाएँ हाथ में गृहीत रजोहरण से दोनों पैरों का परिमार्जन करें। दाहिनी जंघा के मूल में मुखवस्त्रिका को सुरक्षित रखकर और बाएँ हाथ में रजोहरण लेकर बैठ जाएँ। • फिर रजोहरण की दसीओं से दाहिने हाथ के ऊपरी और मध्य भाग को स्पर्शित करें। • फिर कालमण्डल में उपस्थित होकर संपुट के