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244... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
खमासमणाणं' कहें। ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। फिर पूर्व निर्दिष्ट विधि से कुल नौ बार कालमंडल करें।
दांडीधर - खड़ा होकर कहें इच्छाकारि साहवो उवउत्ता होह, पाभाइयकाल वारवट्टे। उस समय सभी कालग्राही वारवट्टे कहें। फिर दांडीधर, कालग्राही के सम्मुख दंडीधर को स्थिर करके रखें।
कालग्राही- 'पाभाइयकाल लियावणियं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ सूत्र' पूर्वक एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। लोगस्ससूत्र बोलें। फिर पूर्ववत चारों दिशाओं में 17-17 गाथाओं का चिंतन करें। उस समय दांडीधर मुनि कालग्राही के साथ अन्य दिशा सन्मुख होकर खड़ा रहे । कायोत्सर्ग के समय कालग्राही की भुजाओं और सत्तरह गाथाएँ बोलते समय पैरों का प्रमार्जन करें।
कालग्राही चारों दिशाओं की क्रिया करके, पूर्व दिशा में खड़े होकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। फिर कालग्राही और दांडीधर दोनों ही 'मत्थएण वंदामि आवस्सइ इच्छं' कहकर भूमि का प्रमार्जन करते हुए 'असज्ज - 3 निसीहि' शब्द को तीन बार बोलते हुए पाटली के समीप जाएँ। वहाँ 'नमो खमासमणाणं' कहें।
दांडीधर - खड़ा रहे।
कालग्राही– खमासमण पूर्वक ईर्यापथ प्रतिक्रमण, मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन एवं द्वादशावर्त्तवन्दन करें। फिर इच्छा. संदि. पाभाइय काल पवेडं ? जाव सुद्धं इच्छं । फिर खमा 'इच्छकारि साहवो पाभाइय काल सुज्झे?" दांडीधर एवं सभी योगवाही 'सुज्झे' कहें।
कालग्राही - 'भगवन्! मु पाभाइयकालसुद्ध' कहे। फिर दोनों मुनि खमासमण दें।
कालग्राही - 'इच्छा. संदि भगवन्! सज्झाय करूँ? इच्छं' एक नवकार मन्त्र पूर्वक 'धम्मो मंगल' की पाँच गाथाएँ बोलें।
दांडीधर - खमा. इच्छकारी साहवो दिट्ठ सुयं किंचि? कालग्राही एवं सभी योगवाही 'न किंचि' कहें।
दांडीधर - दंडीधर की प्रमार्जना कर उसे पाटली के ऊपर रखें। फिर दोनों मुनि एक खमासमण देकर 'मिच्छामि दुक्कडं' कहें। फिर एक नवकार गिनकर पाटली का उत्थापन करें।