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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...243
खमा. इच्छा. संदि. पाभाईकाल (जो काल हो उसका नाम लेते हुए) थापुं?
कालग्राही- थापो
दांडीधर- इच्छं शब्द कहकर एक नमस्कार मन्त्र के स्मरण पूर्वक पाटली और एक नमस्कार मन्त्र के स्मरणपूर्वक हाथ में रही दंडीधर की स्थापना करके खड़ा हो जाए। उस समय ऊर्ध्वस्थित कालग्राही भी एक परमेष्ठीमन्त्र का स्मरण कर पाटली और दंडीधर की स्थापना करें। फिर कालग्राही और दांडीधर दोनों एक खमासमण दें। __कालग्राही- इच्छा. संदिसह, पाभाईकाल पडिअरुं? इच्छं कहकर कालग्राही एवं दांडीधर दोनों साथ-साथ 'मत्थएण वंदामि आवस्सई इच्छं' 'असज्ज 3 निसीहि' ऐसा तीन बार बोलते हुए एवं भूमि की प्रमार्जना करते हुए पूर्व दिशा (कालमंडल) की ओर जाएं।45 'नमो खमासमणाणं' कहकर कालग्राही पश्चिम दिशा सन्मुख खड़ा हो जाएं।
दांडीधर- 'मत्थएण वंदामि आवस्सई इच्छं' कहकर पश्चिम दिशा46 की ओर भूमि का प्रमार्जन करते हुए तथा 'असज्ज 3 निसीहि' शब्द को तीन बार कहते हुए पाटली के समीप आकर 'नमो खमासमणाणं' कहें। खमा. 'इच्छा. संदि. पाभाईकाल वारवट्टे' कहें। उस समय कालग्राही एवं सभी योगवाही 'वारवट्टे' बोलें। फिर दांडीधर ‘इच्छं- मत्थएणं वंदामि आवस्सई इच्छं' कहकर भूमि का प्रमार्जन करते हुए तथा 'असज्ज 3 निसीहि' शब्द को तीन बार बोलते हुए कालग्राही के सम्मुख जायें। वहाँ नमो खमासमणाणं कह खड़े रहें।
कालग्राही- 'मत्थएण वंदामि आवस्सइ इच्छं' कहकर भूमि का प्रमार्जन करते हुए 'असज्ज 3 निसीहि' वाक्य को तीन बार बोलते हुए पाटली के समीप जाएं और 'नमो खमासमणाणं' कहें। फिर खमासमण, ईर्यापथ प्रतिक्रमण, एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग, पूर्ण करके प्रकट में परमेष्ठी मन्त्र
कहें।
फिर खमासमण, मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन, द्वादशावर्त्तवन्दन करें।47 उसके बाद खमासमण, इच्छा. संदि. भगवन्! पाभाईय काल संदिसाइं? इच्छं। पुनः खमा., इच्छा. संदि. पाभाईय काल लेउं (जाव सुद्ध), इच्छं।
फिर मत्थएण वंदामि आवस्सइ इच्छं कह भूमि का प्रमार्जन करते हुए 'असज्ज 3 निसीहि' कहते हुए दांडीधर के सम्मुख आएं। वहाँ 'नमो