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________________ 242... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण • इसके बाद पुनः पूर्व दिशा में मुख करके एवं संकुचित भुजाओं को फैलाकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में परमेष्ठी मन्त्र बोलें। • फिर 'मत्थएण वंदामि' कहते हुए मस्तक झुकाकर 'आवस्सही असज्ज 3, निसीहि 3 नमो खमासमणाणं का उच्चारण करते हुए स्थापनाचार्य मंडल में प्रवेश करें। वहाँ स्थापनाचार्य के समक्ष एक खमासमण देकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें, एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें, कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में नमस्कार मन्त्र बोलें। • फिर कालग्राही एक खमासमण देकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त वन्दन करें। पुनः एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छाकारेण संदिसह पाभाइउ काल पवेयहं इच्छकारि तपसियहु पाभाइड कालु सूझइ- हे भगवन्! आप स्वेच्छा से प्राभातिक काल सम्बन्धी प्रवेदन की आज्ञा दीजिए। आपकी इच्छापूर्वक सभी योगवाहियों के लिए प्राभातिक काल शुद्ध रूप से प्रवृत्त रहा है? तब सभी योगवाही कहें'सूझति' हाँ शुद्ध है। __आचारदिनकर के मतानुसार यहाँ तक सम्पूर्ण क्रिया मौन पूर्वक होती है, इसके बाद ही दूसरों से बोला जाता है। • तत्पश्चात कालग्राही एवं दंडधर दोनों ही स्थापनाचार्य के आगे घुटने के बल बैठकर दशवैकालिकसूत्र के प्रथम अध्ययन (5 गाथा) का स्वाध्याय करें। फिर कालग्राही द्वादशावर्त्तवन्दन करके कहें- 'इच्छकारि तपसियह दिटुं सुयं?' - आपकी अनुमति से पूछता हूँ कि तपस्वी योगवाही मुनियों द्वारा काल शुद्धि के सम्बन्ध में क्या कुछ देखा या सुना गया है? तब सभी योगवाही बोलें'न किंचि'- इस सम्बन्ध में हम योगवाहियों द्वारा कुछ भी देखा या सुना नहीं गया है। यह प्राभातिक कालग्रहण की विधि है।44 तपागच्छ आदि कुछ परम्पराओं में (कालग्राही एवं दांडीधर की अपेक्षा) प्राभातिक कालग्रहण की विधि इस प्रकार की जाती है नोतरा विधि के अनुसार कालग्राही मुनि ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। उसके बाद वसति शोधन से लेकर दांडीधर के द्वारा पाटली स्थापना करके 'सुद्धा वसही' कहा जाए वहाँ तक सम्पूर्ण विधि करें। फिर कालग्राही 'तहत्ति' कहें। उसके बाद दांडीधर- नीचे बैठकर, दाएँ हाथ को सीधा रखकर एवं परमेष्ठी मंत्र का स्मरण कर दण्डी का उत्थापन करें, हाथ एवं दंडीधर का प्रमार्जन करें, अंगूठा और अंगुली के बीच में दंडी को स्थिर कर खड़ा रहें। फिर
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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