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________________ योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ... 241 पूर्ण करके प्रकट में परमेष्ठी मन्त्र बोलें। • तदनन्तर संडाशक (कटिभाग से नीचे के 17 स्थानों) की प्रमार्जना कर उकडु आसन में बैठ जायें। फिर अस्खलित विधिपूर्वक तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें और रजोहरण द्वारा तीन बार कालमंडल की प्रतिलेखना करें। यहाँ कालमंडल की प्रतिलेखना करते समय हाथ परावर्त्तन आदि की विधि गुरुमुख से सीखनी चाहिए, इन विधियों को लिखकर पूर्ण नहीं किया जा सकता है। • तत्पश्चात कालग्राही नमस्कार मन्त्र का स्मरण कर दंडी को दंडधर के हाथ में समर्पित करें। कालग्राही- फिर दोनों हाथों से कालमण्डल को स्पर्श करते हुए एवं उन्हें पैरों से संयोजित कर 'निसीहि नमो खमासमणाणं' इतना बोलते हुए कालमंडल में प्रवेश करें। फिर कालमंडल की परिष्कृत भूमि पर चोलपट्ट का प्रतिलेखन करें। फिर सीधे खड़े होकर कहें- 'उवउत्ता होह' - सभी योगवाही अप्रमत्त हों। • फिर दंडधर द्वारा गृहीत दंड के सम्मुख खड़े होकर 'पाभाइयकाल लियावणियं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थ सूत्र' बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें, कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में परमेष्ठी मन्त्र बोलें। • उसके बाद रजोहरण सहित दोनों भुजाओं को धीरे से आकुञ्चित (संयोजित) कर एवं मुखवस्त्रिका को मुख के आगे लगाकर दोनों हाथों को जोड़े हुए चतुर्विंशतिस्तव बोलें। फिर कालग्राही पूर्व दिशा की ओर मुख करके स्वाध्याय के रूप में दशवैकालिकसूत्र का द्रुमपुष्पिका नामक प्रथम अध्ययन की पाँच गाथाएँ, श्रामण्यपूर्विका नामक द्वितीय अध्ययन की ग्यारह गाथाएँ और क्षुल्लकाचार नामक तृतीय अध्ययन की एक गाथा कुल 17 गाथाओं का मनवचन-काया की एकाग्रता पूर्वक स्मरण करें। यहाँ इतना विशेष है कि अध्ययन का समाप्ति सूचक आलापक 'त्तिबेमि' शब्द का उच्चारण न करें, क्योंकि परम्परागत सामाचारी के अनुसार इस शब्द का उच्चारण करने पर कालग्रहण नष्ट हो जाता है। • तदनन्तर अनुक्रमशः दक्षिण, पश्चिम एवं उत्तर दिशा की ओर मुख करके भी पूर्ववत एक-एक नमस्कार मंत्र का कायोत्सर्ग करें। लोगस्ससूत्र के पाठ पूर्वक दशवैकालिकसूत्र की 17 - 17 गाथाओं का चिन्तन करें। कालग्राही प्रत्येक दिशा में मुख करके जहाँ-जहाँ खड़ा होता हो दण्डधर के द्वारा पहले से ही उस जगह का प्रतिलेखन कर लिया जाए।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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