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________________ 240... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण दंडीधर - तदनन्तर दंडीधर कालमंडल के अन्त में खड़े होकर दिशाओं का अवलोकन करें। • फिर 'आवस्सही' शब्द कहते हुए कालमंडल से बाहर आयें और 'असज्ज 3 निसीहि 3 नमो खमासमणाणं' बोलते हुए स्थापनाचार्य मंडल में आकर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। गमनागमन की आलोचना करते हुए एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रगट रूप से नमस्कार मन्त्र बोलें। • उसके बाद मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर स्थापनाचार्य को द्वादशावर्त्त वन्दन करें। • फिर दंडधर एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छाकारेण पाभाइयकालवेला वट्टइ, साहुणो उवडत्ता होह' - हे भगवन्! प्राभातिक काल का समय प्रवर्त्तमान है, योगवाही साधुजन अप्रमत्त हो जाएं, ऐसी अनुमति दें। इसके बाद स्थापनाचार्य के समीप रखे गए दंड को ग्रहण करें और 'आवस्सही' शब्द कहते हुए स्थापनाचार्य मंडल से बाहर निकलें और पूर्ववत 'असज्जन3 निसीहि-3 नमो खमासमणाणं' बोलते हुए कालमंडल में प्रवेश कर कालग्राही के समीप आकर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके खड़ा हो जायें। · कालग्राही - उसके पश्चात कालग्राही 'आवस्सही' शब्द पूर्वक कालमंडल से बाहर निकलें और 'असज्ज - 3 निसीहि - 3 नमो खमासमणाणं' बोलते हुए स्थापनाचार्य मंडल में जाकर गमनागमन क्रिया के दोषों की आलोचना के लिए ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में नमस्कार मन्त्र बोलें। • फिर कालग्राही मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त्त वन्दन करें। • फिर एक खमासमण देकर कहें- पाभाइउ कालु संदिसावहं - प्राभातिक काल ग्रहण करने निमित्त आपकी आज्ञा स्वीकार करते हैं। पुनः एक खमासमण देकर कहें - पाभाइउ कालु लेहं- आपकी आज्ञापूर्वक प्राभातिक-काल ग्रहण करते हैं। • उसके पश्चात जितना शुद्ध हो उतना मौनपूर्वक 'आवस्सही' शब्द कहते हुए स्थापनाचार्य मंडल से बाहर निकलें और 'असज्ज - 3 निसीहि - 3 नमो खमासमणाणं' बोलते हुए कालमंडल में प्रवेश करें। कालग्राही एवं दंडधर - कालग्राही के कालमंडल में आ जाने पर दंडधर हाथ में रहे दंड को कालग्राही के सम्मुख स्थापित करें। उसके पश्चात कालग्राही उस दंड के समक्ष सीधे खड़े होकर गमनागमन क्रिया के दोषों की आलोचना निमित्त ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें, एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें, फिर
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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