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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...239
6. दंडीधर को अपने स्थान पर रखते हुए 7. दंडीधर की स्थापना करते हुए 8.काल सम्बन्धी प्रतिक्रमण करते हुए 9. रजोहरण या मुखवस्त्रिका अविधिपूर्वक ग्रहण की जाए 10 अशुद्ध उच्चारण किया जाए 11. पाटली खण्डित हो जाए तो कालमंडल दूषित हो जाता है। ऐसी स्थिति में दुबारा कालमंडल विधि करनी चाहिए।
यहाँ पाटली खण्डित होने का अर्थ है- डंडी की पाटली के ऊपर स्थापना करते समय किसी तरह की भूल हो जाना। ऐसी स्थिति में बारह नमस्कार मन्त्र का स्मरण कर फिर से डंडी की स्थापना करें और स्वाध्यायकाल का प्रतिक्रमण
करें।43
कालग्राही एवं दांडीघर की विधि
कालग्रहण करते समय कालग्राही और दांडीधर- इन दो मुनियों की विशेष भूमिका होती हैं। नियमत: ये दोनों मुनि ही कालग्रहण की सम्पूर्ण विधि सम्पन्न करते हैं। यहाँ प्राभातिक कालग्रहण की अपेक्षा काल विधि प्रस्तुत करेंगे। विधिमार्गप्रपा के अनुसार प्राभातिक कालग्रहण करते समय कालग्राही एवं दांडीधर निम्न विधि करते हैं
___ कालग्राही एवं दंडधर- सर्वप्रथम प्राभातिक काल ग्रहण करने के लिए कालग्राही पश्चिम दिशा की ओर स्थापनाचार्य को स्थापित करें और दंडीधर को स्थापनाचार्य के समीप में रखें। . उसके बाद स्वयं के बायीं तरफ में स्थित दंडीधर के साथ कालमंडल (सीमा क्षेत्र) में खड़े होकर एक नमस्कार मन्त्र बोलें। • तत्पश्चात कालग्राही एवं दंडीधर दोनों 'आवस्सही' शब्द बोलते हुए कालमंडल से बाहर निकलें और 'असज्ज-असज्ज-असज्ज, निसीहिनिसीहि-निसीहि नमो खमासमणाणं- अर्थात किसी के प्रति आसक्त न होते हुए और समस्त पापकारी प्रवृत्तियों का निषेध करके क्षमाश्रमणों को नमस्कार करता हूँ। इतना बोलकर स्थापनाचार्य मंडल (जहाँ स्थापनाचार्य रखे हुए हैं) में प्रवेश करें। • वहाँ स्थापनाचार्य के सम्मुख एक खमासमण देकर बोलेंइच्छाकारेण संदिसह पाभाइउ कालु पडियरहं., इच्छं मत्थएण वंदामि (हे भगवन्! आप स्वेच्छा से प्राभातिक काल ग्रहण करने की आज्ञा दीजिए) इतना कहकर 'आवस्सही' शब्द पूर्वक स्थापनाचार्य मंडल से बाहर निकलकर 'असज्ज 3 निसीहि 3 नमो खमासमणाणं' बोलते हुए कालमंडल के समीप खड़े हो जायें।