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________________ 238... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण आदेश लेने से पूर्व ही छींक आ जाए, कलह हो जाये या अन्य किसी प्रकार का दोष लग जाए तो काल का नाश होता है। तब पुन: से कालग्रहण की क्रिया करनी चाहिए। 2. 'संदिसावण' का आदेश लेने के बाद, कालमंडल में गमन करते समय अथवा कालमंडल की प्रतिलेखना करने से पूर्व किसी प्रकार का दोष लगता है तो काल नाश होता है। तब कालग्राही को प्रारम्भ से ही कालग्रहण की विधि करनी चाहिए। 3. कालमंडल की प्रतिलेखना एवं कालग्रहण निमित्त कायोत्सर्ग करने के पश्चात कालमंडल से बाहर आते हुए अथवा प्रवेदन करते हुए किसी प्रकार का दोष लगता है तो कालनाश होता है। तब कालग्राही को कालमंडल की सभी क्रियाएँ पुनः करनी चाहिए। 4. एक काल मंडल में अधिकतम तीन बार प्राभातिक काल ग्रहण किया जा सकता है। यदि चौथी या इससे अधिक बार कालग्रहण करना हो तो दूसरे कालमंडल में जाकर यह काल ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार तीनों काल मंडलों में तीन-तीन बार ऐसे कुल नौ बार प्राभातिक काल ग्रहण किया जा सकता है। तदुपरान्त काल के शुद्ध न होने पर दसवीं या ग्यारहवीं बार इसे ग्रहण नहीं कर सकते हैं फिर वह काल निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है। अपवादत: एक कालमंडल में भी नौ बार काल ग्रहण कर सकते हैं, किन्तु इससे अधिक कालग्रहण करना किसी दृष्टि से उचित नहीं है।42 कहने का आशय यह है कि उक्त स्थितियों में प्राभातिक काल का नाश होने पर उसे पुनः पुनः नौ बार तक लिया जा सकता है तथा उत्सर्गत: एक कालमंडल में तीन बार कालग्रहण विधि की जा सकती है। अपवादतः एक काल मंडल में नौ बार भी प्राभातिक कालग्रहण लिया जा सकता है, इससे अधिक नहीं। काल मंडल नाश के कारण जीतव्यवहार में कालमंडल दूषित होने के निम्न कारण बताए गए हैं1. पाटली की स्थापना करते हुए 2. खमासमण देते हुए 3. दंडीधर ग्रहण करते हुए 4. दंडीधर की प्रतिलेखना करते हुए 5. दंडीधर को पार्श्व में रखते हुए
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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