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236... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण विपरीत क्रम से हो जायें अथवा गुरु को व्युत्क्रम से वंदन किया जाये तो कालनाश होता है।
• यदि कालग्रहण से सम्बन्धित आवश्यक क्रिया करते हुए स्खलना हो जाये, कालमंडल से बाहर आते हुए छींक आ जाये या दीपक के प्रकाश का स्पर्श हो जाये तो काल का व्याघात होता है।
• यदि दिशावलोकन करते हुए कालप्रेक्षक मुनि के द्वारा कपिहसित (बन्दर के हँसने की आवाज) या गर्जना सुन ली जाए अथवा विद्युत, उल्का या कनक गिरते हुए देख लिया जाए तो कालवध होता है।
• काल ग्रहण करते हुए दंडधर के ऊपर पानी की बूंदें गिर जाए, कोई छींक दें, भाव अन्य रूप परिणत हो जाए, विभीषिका को देखकर भयभीत हो जाए, रोमांचित हो जाए, इन स्थितियों में काल शुद्ध रूप से ग्रहण नहीं होता है। दिशाओं का अवलोकन करते हुए चित्त भ्रमित हो जाये अथवा शंकास्पद स्थिति पैदा हो जाये कि काल शुद्ध है या अशुद्ध? तो काल का उपघात होता है।
• दिशावलोकन करते हुए मन अन्यत्र संक्रान्त हो जाये, इन्द्रिय विषय उच्छृखल हो जाये तथा असजगता पैदा हो जाये तो काल नाश होता है।
• यदि उत्तरदिशा का निरीक्षण किये बिना शेष दिशाओं को पहले ग्रहण कर लें तो काल नष्ट हो जाता है। जघन्यत: तीन ताराओं के न दिखने पर भी कालग्रहण कर लें तो काल नष्ट होता है।
• यदि निश्चित नक्षत्र या वर्षावास के अतिरिक्त वर्षा गिर रही हो, अथवा उल्कापात, रजपात, उदकनिपात आदि हो रहा हो, तो इन स्थितियों में कालशुद्ध नहीं होता है।
• कालमंडल भूमि में प्रवेश करते समय 'निसीहि निसीहि निसीहि नमो खमासमणाणं' न बोलने पर, किसी तरह की स्खलना हो जाने पर, कालमंडलभूमि का प्रमार्जन न करने पर अथवा मार्जार आदि के द्वारा मार्ग को काट देने पर भी कालवध होता है।
विशेष- कालवध, कालघात, कालउपघात, कालहत, कालनाश, कालभंग आदि समानार्थक शब्द हैं। यहाँ कालनाश के जो कारण बताए गए हैं वे चारों काल से सम्बन्धित हैं। चारों काल ग्रहण करते हुए उपर्युक्त कारणों में से किसी तरह का कारण उपस्थित हो जाये तो वह काल नष्ट हो जाता है।