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________________ 230... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण काल के प्रकार जैन व्याख्याकारों ने काल के चार प्रकार बतलाए हैं- 1. प्रादोषिक 2. अर्द्धरात्रिक 3. वैरात्रिक और 4. प्राभातिक। 29 प्रादोषिक - सूर्यास्त से लेकर रात्रि के प्रथम प्रहर का समय। इसे व्याघातिक काल भी कहते हैं। अर्द्धरात्रिक- अर्द्धरात्रि का समय । वैरात्रिक- रात्रि के तृतीय प्रहर का समय । प्राभातिक- प्रातः काल का समय। कौनसा काल किस समय ग्रहण करें? विधिमार्गप्रपा के अनुसार प्रादोषिक काल सन्ध्याकाल के समय ग्रहण किया जाता है। उस समय छींक, कोलाहल आदि अनेक व्याघात होने से इसे मुनियों के स्थान में ग्रहण करते हैं। अर्द्धरात्रिक काल अर्द्धरात्रि के पश्चात ग्रहण किया जाता है । वैरात्रिक और प्राभातिक काल रात्रि के चतुर्थ प्रहर में ग्रहण किए जाते हैं | 30 यहाँ कालग्रहण का तात्पर्य दिन और रात्रि के शास्त्रनियुक्त चार प्रहर में वाचना-पृच्छनादि रूप स्वाध्याय करने के लिए चार काल (समय) को शुद्ध रूप से ग्रहण करना है, क्योंकि काल आदि के उपचार से विद्या सिद्ध होती है। कौनसा काल किन दिशाओं में ग्रहण करें? आगमिक व्याख्याओं के अभिमतानुसार प्रादोषिक और अर्द्धरात्रिक कालग्रहण उत्तरदिशा की ओर मुख करके लिया जाना चाहिए। वैरात्रिक कालग्रहण वैकल्पिक है। यह काल पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके ग्रहण करना चाहिए। प्राभातिक कालग्रहण पूर्वाभिमुख स्थित होकर लिया जाना चाहिए। 31 किस काल को कितनी बार ग्रहण करें? कौनसा काल कितनी बार ग्रहण किया जा सकता है ? इस प्रश्न पर विचार किया जाए तो विधिमार्गप्रपा के मतानुसार प्रादोषिक काल दिन में एक बार ही ग्रहण किया जाता है। यदि एक बार में शुद्ध रूप से ग्रहण न किया जाए तो वह काल नष्ट हो जाता है अर्थात फिर उस काल में आगम का नया पाठ ग्रहण नहीं कर सकते हैं।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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