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220... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण संघट्टा ग्रहण करते हैं। तीसरा खमासमण देकर कहें- 'संघट्ट पडिगाहणत्यु काउस्सग्गु करिसह'- संघट्टा ग्रहण करने के निमित्त कायोत्सर्ग करते हैं।
आउत्तवाणय ग्रहण- किन्हीं परम्परा में पूर्ववत तीन खमासमण सूत्र द्वारा आउत्तवाणय के आदेश भी लिये जाते हैं जैसे- आउत्तवाणय संदिसाविसहं, आउत्तवाणय पडिगाहिसहं, आउत्तवाणय पडिगाहणत्थु काउस्सग्गु करिसहं- ऐसे तीन आदेश लेते हैं।18
समीक्षा- विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर एवं तपागच्छ आदि परम्पराओं में कालिकसूत्र की उद्देशविधि के सम्बन्ध में निम्न अन्तर है
• विधिमार्गप्रपा में कालिकसूत्रों की उद्देश विधि करते वक्त कालमंडल एवं संघट्टा ग्रहण का आदेश लेना अनिवार्य बतलाया है और अन्य मतानुसार आउत्तवाणय के आदेश का भी सूचन किया है किन्तु आचार दिनकर में मात्र संघट्टाग्रहण सम्बन्धी तीन आदेश लेने का निर्देश इस प्रकार है- 'संघट्टा महपत्तीपडिलेहेमि' योगवाही मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त्तवंदन करें। फिर 'संघट्ट संदिसावेमि' 'संघट्टस्स संदिसावणियं करेमि काउस्सग्गंजाव वोसिरामि' बोलकर एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में पुनः लोगस्ससूत्र कहें।19
• तपागच्छ परम्परा से सम्बन्धित संकलित कृतियों में उद्देश विधि को लेकर सामाचारी भेद है। जैसे- मुनि अजितशेखर विजयजी द्वारा संपादित श्री प्रव्रज्या योगादि विधिसंग्रह में निर्देश है कि समवायांग आदि कालिक सूत्रों के योग में केवल उद्देश विधि करनी हो तो पृथक-पृथक चार खमासमण द्वारा निम्न चार आदेश लें___ 1. कालमांडला संदिसाहुं? 2. कालमांडला पडिलेहV? 3. सज्झाय पडिक्कमशं? 4. पाभाइय काल पडिक्कमशं? तत्पश्चात दो बार द्वादशावर्त्तवन्दन करके दो खमासमण द्वारा 'बइसणं' का आदेश लें।20।
• आचार्य देवेन्द्रसागरसूरी द्वारा संपादित श्री बृहद्योगविधि में कालिकसूत्रों की उद्देशविधि के सम्बन्ध में यह कहा गया है कि कालिक सूत्रों के योग हों तो योगवाही 1. कालमांडला संदिसावउं? 2. कालमांडला पडिलेहरुं? 3. सज्झाय पडिक्कमशं?- ये तीन खमासमण अधिक दें। यदि केवल समुद्देश विधि हो तो द्वादशावत वंदन करके ‘बइसणं' का आदेश लें। इस