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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ... 219
के द्वारा 'सज्झाय' - स्वाध्याय का और दो खमासमण के द्वारा 'बइसणं' - बैठने का आदेश लें।
सज्झाय आदेश - पुनः दो बार खमासमणसूत्र द्वारा वंदन करके 'सज्झाउ पाठ विसहं' - स्वाध्याय का पाठ प्रारम्भ करें ? 'सज्झाय पाठवणत्थु काउस्सग्गु करिसहं'– स्वाध्याय पाठ शुरू करने के लिए कायोत्सर्ग करें? इस प्रकार स्वाध्याय प्रारम्भ करने की अनुमति लें।
समीक्षा - विधिमार्गप्रपा, 15 आचारदिनकर 16 एवं तपागच्छ17 आदि में यह उद्देशविधि लगभग समान हैं। विशेष इतना है कि आचारदिनकर में सप्त थोभ वंदन करते समय समवसरण की तीन प्रदक्षिणा देने का उल्लेख नहीं है और वायणा, सज्झाय, बइसणं आदि के आदेश लेने का भी निर्देश नहीं है ।
विधिमार्गप्रपा में उद्देश आदि के समय सम्पादित की जाने वाली क्रियाओं का सम्यक उल्लेख किया गया है। इसी के साथ विधिमार्गप्रपा में वर्णित वायणाबइसणं आदि की आदेश विधि अन्य परम्पराओं में आंशिक रूप से प्रचलित है। यद्यपि इसकी मूल विधि सभी परम्पराओं में समान है । कालिकसूत्र के समय उद्देशादि की शेष विधि
यदि कालिकसूत्र के योग में प्रवेश कर रहे हों और तत्सम्बन्धी अंगसूत्र, उपांगसूत्र या उनके श्रुतस्कन्ध की उद्देशविधि की जा रही हो तो पूर्वनिर्दिष्ट सप्तखमासमण, वायणा, बइसणं, बहुवेलं, सज्झाय आदि की अनुमति लेने के पश्चात कालमंडल, संघट्टा एवं आउत्तवाणय के आदेश ग्रहण करने चाहिए। विधिमार्गप्रपा के अनुसार कालिकसूत्रों से सम्बन्धित उद्देशक की शेष विधि निम्नांकित है
कालमंडल- योगवाही मुनि खमासमणसूत्र से गुरु को वंदन कर कहें'कालमंडला संदिसाविसहं' - कालमंडल करने के निमित्त आपकी आज्ञा ग्रहण करते हैं। पुनः दूसरा खमासमण देकर कहें- 'कालमंडला करिसहं'. आपकी अनुमति हो तो कालमंडल करते हैं, ऐसा आदेश लें।
संघट्टा ग्रहण - तदनन्तर योगवाही मुनि तीन खमासमण द्वारा संघट्टा (संस्पर्श) का आदेश लें। पहला खमासमण देकर कहें- 'संघट्टउ संदिसाविसहं'- संघट्टा ग्रहण करने के निमित्त आपकी आज्ञा स्वीकार करते हैं। दूसरा खमासमण देकर कहें- संघट्टउ पडिगाहिसहं' - आपकी अनुमति पूर्वक