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218... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
• सामान्यतया अंगूसत्र या श्रुतस्कन्ध आदि की उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा विधि क्रमश: युगपद् होती है, भिन्न-भिन्न काल में नहीं होती है।
• किसी अंगसूत्र की उद्देशादि विधि हो तो आयारंगं उद्दिसह, आयारंगं समुद्दिसह, आयारंगं अणुजाहण- ऐसा आलापक कहें। यदि किसी सूत्र के श्रुतस्कन्ध की उद्देशादि विधि हो तो आवस्सय सुयक्खधं उद्दिसह, समुद्दिसह, अणुजाणह- ऐसा आलापक कहें। यदि किसी सूत्र के अध्ययन की उद्देशादि विधि हो तो आवस्सय सुयक्खंघे पढमं अज्झयणं उद्दिसह, समुद्दिसह, अणुजाणह- ऐसा आलापक कहें। इसी तरह शतक, वर्ग आदि की उद्देशादि विधि समझनी चाहिए। शेष विधि
वाचना आदेश- विधिमार्गप्रपा के मतानुसार पूर्वकथित उद्देश विधि होने के पश्चात योगवाही को वाचना का आदेश लेना चाहिए। एक खमासमण पूर्वक वंदन कर 'वायणा संदिसावेमि'- वाचना श्रवण करने के लिए आप अनुमति दें। पुन: दूसरा खमासमण देकर- 'वायणा पडिग्गहेमि'- आपकी अनुमतिपूर्वक वाचना ग्रहण करता हूँ- इस प्रकार वाचना लेने की अनुज्ञा प्राप्त करें।13
बैठने का आदेश- तत्पश्चात वाचना श्रवण हेतु बैठने का आदेश लेना चाहिए। योगवाही पूर्ववत एक खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन कर कहें- 'बइसणं संदिसावेमि'- मैं आसन पर बैठने के लिए अनुमति लेता हूँ। पुनः दूसरा खमासमण देकर कहे- 'बइसणं ठामि' - आपकी अनुमति पूर्वक आसन पर बैठता हूँ। इस प्रकार बैठने की अनुज्ञा प्राप्त करें।
__पूर्वनिर्दिष्ट अनुज्ञा विधि होने के पश्चात योगवाही द्वादशावर्त्तवन्दन पूर्वक प्रवेदन हेतु पवेयणा विधि करें।
प्रत्याख्यान ग्रहण- आचार्य जिनप्रभसूरि के अनुसार योग प्रवेश के प्रथम दिन असमर्थ योगवाही को आयंबिल और समर्थ योगवाही को उपवास का प्रत्याख्यान करना चाहिए तथा दूसरे दिन पारणा में नीवि का प्रत्याख्यान करना चाहिए।14
बहुवेलं आदि के आदेश- तदनन्तर योगवाही पूर्ववत दो खमासमण के द्वारा 'बहुवेलं'- बार-बार की जाने वाली प्रत्येक क्रियाओं का, दो खमासमण