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216... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण 3. विधिमार्गप्रपा एवं तपागच्छ परम्परा में योगनन्दि के समय बृहतनन्दीपाठ सुनाने का उल्लेख है जबकि आचारदिनकर में लघुनन्दीपाठ का सूचन है। 5. विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर आदि में नन्दिविधि समवसरण के समक्ष करने का निर्देश है किन्तु तपागच्छ आदि परम्पराओं में इस विधि को सम्पन्न करने के लिए नन्दिरचना एवं स्थापनाचार्य दोनों का उल्लेख किया गया है। उद्देश विधि
योगोद्वहन में नन्दी विधि करने के पश्चात उद्देश आदि की विधि की जाती है। इस उद्देश विधि में सात खमासमणपूर्वक जिस आगमसूत्र के अध्ययन हेतु योग कर रहे हैं तद्विषयक निवेदन एवं उसकी गुर्वानुमति प्राप्त की जाती है। विधिमार्गप्रपा के मतानुसार उद्देश विधि निम्न प्रकार है। यहाँ श्रुतस्कन्ध की अपेक्षा उद्देश विधि कहते हैं
1. सर्वप्रथम योगवाही मुनि मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावत वंदन पूर्वक कहे- 'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं अमुक सुयक्खंधं (अथवा अमुगं सयं, अमुगं अंगं, अमुगं वग्गं, अमुक सयस्स अमुगं उद्देसं आइल्लं अंतिल्लं वा) उद्दिसह'- हे भगवन्! आप हमें इच्छापूर्वक अमुक श्रुतस्कन्ध का निरूपण करिये। गुरु- 'उद्दिसामो' कहते हैं।
2. तत्पश्चात शिष्य पुनः खमासमणसूत्रपूर्वक वंदन कर कहें'संदिसह किं भणामो?'- आप बताइए कि मैं क्या पढूँ? गुरु कहें- 'वंदित्ता पवेयह'- वंदन कर प्रतिपादन करो।
3. योगवाही शिष्य 'इच्छं' कह खमासमणसूत्र से वंदन कर कहें'इच्छाकारेण तुन्भेहिं अहं अमुक सुयक्खंधाइ उद्दिटुं?' - हे भगवन्! आपने स्वेच्छा से अमुक श्रुतस्कन्धादि का प्रतिपादन किया है? गुरु कहें- 'उद्दिटुं उद्दिष्टुं उद्दिष्टुं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं तदुभयेणं सम्मं जोगो कायव्वो'11- मैंने अमुक श्रुतस्कन्ध का निरूपण किया है, तुम्हें पूर्वाचार्यों द्वारा प्राप्त सूत्र, अर्थ एवं सूत्रार्थ से सम्यक प्रकार से योग वहन करना चाहिए।
4. तत्पश्चात शिष्य खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन कर कहे- 'तुम्हाणं पवेइयं, संदिसह साहूणं पवेएमि'- मैंने आपको प्रवेदित कर दिया है, अब इसे मुझे अन्य साधुओं को बताने की अनुज्ञा दें। गुरु कहें- 'पवेयह' - अन्य साधुओं को प्रवेदित करने की अनुज्ञा है।