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________________ 214... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण बोलें। फिर शक्रस्तव, अर्हणादिस्तोत्र, जयवीयराय आदि के पाठ पूर्ववत बोलें। फिर योगवाही मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके द्वादशावर्त्त वन्दन करें। कायोत्सर्ग - उसके बाद 'उद्देशक आदि के अध्ययन निमित्त नन्दी करने हेतु मैं कायोत्सर्ग करता हूँ ऐसा कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर चतुर्विंशतिस्तव का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर पुनः प्रकट में चतुर्विंशतिस्तव बोलें। नन्दीश्रवण फिर गुरु शिष्य को अपनी बायीं तरफ करके तीन बार नमस्कार मंत्र बोलकर लघुनन्दी पढ़ें। 5 आचार्य वर्धमानसूरि ने योगनंदी क्रम में यह निर्देश भी दिया है कि योगवाही साधु-साध्वी की प्रथम वाचना के अन्त में उद्देसनन्दी, द्वितीय वाचना के अन्त में समुद्देस नन्दी एवं तृतीय वाचना के अन्त में अनुज्ञानन्दी होती है। अतएव गुरु उद्देस - समुद्देस - अनुज्ञानन्दी के निमित्त तीन बार नन्दीसूत्र सुनाते हैं और क्रमशः तीन बार वासचूर्ण डालते हैं। आचार दिनकर के मतानुसार उपर्युक्त विधि होने के बाद गुरु गन्ध-अक्षत को अभिमन्त्रित करें। फिर प्रतिमा के चरणों में डालें तथा उपस्थित सकल संघ को दें। तदनन्तर सभीजन योगवाही के सिर पर 'नित्थारपारगो होह' कहते हुए वासचूर्ण डालें और अक्षत उछालें । तपागच्छ आदि परम्पराओं में प्रचलित योगनन्दीविधि इस प्रकार है - योगवाही नन्दिरचना अथवा खुले हुए स्थापनाचार्य के चारों ओर एक-एक नमस्कार मन्त्र गिनते हुए और गुरु को नमस्कार करते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर आदेश पूर्वक वसतिशुद्धि करें। 7 उसके बाद एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेहुं? गुरु- पडिलेहेह इच्छं कह मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें। फिर योगवाही मुनि एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छकारि भगवन् ! तुम्हें अम्हं श्री आवश्यक श्रुतस्कंध (अथवा जिस सूत्र के योग में प्रवेश कर रहे हों उसका नाम लेते हुए) उद्देसावणी (अणुजाणावणी) नन्दी करावी वासनिक्षेप करो? गुरु- करेमि ऐसा कहकर गुरु तीन नमस्कार मन्त्र बोलकर एक बार वास का क्षेपण करें। उस समय 'उद्देश नन्दि पवत्तेह''नित्थारपारगा होह' बोलें। शिष्य 'तहत्ति' कहें। - फिर शिष्य एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छकारि भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री आवश्यक श्रुतस्कंध उद्देसावणी नंदिकरावणी वासनिक्षेपकरावणी
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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