________________
योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...213 वग्ग चूलियाए, विवाह चूलियाए, अरुणोववायस्स, गुरुलोववायस्स, धरणोववायस्स, वेलंघरोववायस्स वेसमणोववायस्स, देविंदोववायस्स, उट्ठाणसुयस्स, समुट्ठाणसुयस्स, नागपरियावलियाणं, निरयावलियाणं, कप्पियाणं, कप्पवडिसियाणं, पुफियाणं, पुप्फ चूलियाणं, वण्हीदसाणं, आसीविस भाववाणं, दिट्ठिविस भावणाणं, चारण सुमिणग भावणाणं, महासुमिणग भावणाणं, तेयग्गनिसग्गाणं, सव्वेसिपि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ।
जइ अंग पविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ, किं आयारस्स, सूयगडस्स, ठाणस्स, समवायस्स, विवाह पण्णत्तीए, नायाधम्मकहाणं उवासगदसाणं, अंतगडदसाणं, अणुत्तरोववाइदसाणं, पण्हावागरणाणं, विवागसुयस्स, दिट्ठिवायस्स, सव्वेसि पि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ।
इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च- इमस्स साहुस्स इमाइ साहुणीए वा अमुगस्स अंगस्स सुयक्खंधस्स वा उद्देसनन्दी अणुण्णानंदी का पयट्टइ।'
उक्त नन्दीपाठ तीन बार सुनायें। इस नन्दीपाठ का अन्तिम अंश 'इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च..... वा पयट्टइ को सुनाने का भावार्थ यह है कि अमुक साधु अथवा अमुक साध्वी अमुक अंगसूत्र अथवा अमुक श्रुतस्कंध पढ़ने एवं पढ़ाने हेतु योग में प्रवेश कर रहे हैं।
नन्दीपाठ सुनाने के पश्चात गुरु वासचूर्ण को अभिमन्त्रित कर जिनप्रतिमा के चरणयुगल में डालें और उपस्थित संघ को प्रदान करें।
आचारदिनकर में योगनंदी विधि इस प्रकार उल्लेखित है-4
सर्वप्रथम जिनालय या उपाश्रय में समवसरण की स्थापना कर तीन प्रदक्षिणा करें।
वासदान- फिर शिष्य गुरु को वंदन कर कहे- 'इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं अमुगसुयक्खंघस्स उद्देसानिमित्तं नन्दिकट्टावणियं वासक्खेवं करेह चेइआई च वंदावेह'- तत्पश्चात गुरु पूर्वविधि के अनुसार वास को अभिमन्त्रित कर शिष्य के सिर पर डालें।
देववंदन- फिर पूर्वकथित विधि के अनुसार गुरु-शिष्य वर्धमान स्तुति से चैत्यवंदन करें। इसी क्रम में शान्तिदेवता, श्रुतदेवता, क्षेत्रदेवता, भुवनदेवता, शासनदेवता एवं वैयावृत्यकर देवता की आराधना निमित्त कायोत्सर्ग एवं स्तुति