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210... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण तुम्हे अम्हं जोग उक्खेवावणी नंदीकरावणी वासनिक्खेवकरावणी देवे वंदावेह। गुरु- वंदावेमि। फिर गुरु चैत्यवंदन से लेकर जयवीयराय तक सूत्रपाठ बोलें।
कायोत्सर्ग- तदनन्तर शिष्यगण दो बार द्वादशावर्त वन्दन करें। फिर एक खमासमण देकर कहें- इच्छकारि भगवन्! तुम्हें अम्हं जोगउक्खेवावणी नंदिकरावणी वासनिक्खेवकरावणी देववंदावणी काउस्सग्ग करावेह। गुरु- करेह। शिष्य- इच्छं कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर एक लोगस्स (सागरवरगंभीरा तक) का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। फिर एक खमासमण द्वारा अविधि-आशातना का मिच्छामि दुक्कडं दें।
समीक्षा- योग प्रवेश विधि के सम्बन्ध में तुलनात्मक दृष्टि से विचार किया जाये तो खरतरगच्छ एवं तपागच्छ आदि में परस्पर कुछ समरूपता तो कुछ भिन्नता प्राप्त होती है1. वासदान, कायोत्सर्ग, योग प्रवेश हेतु निवेदन आदि क्रियाएँ दोनों में
एक समान हैं, यद्यपि क्रम में अन्तर है। 2. तपागच्छ आम्नाय में योगप्रवेश के प्रारम्भ में मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन
और वासदान के पश्चात चैत्यवंदन एवं द्वादशा-वन्दन- ये विधियाँ
अतिरिक्त होती हैं। 3. दोनों परम्पराओं में आलापक पाठ एवं उनके शब्द विन्यास को लेकर भी ____ असमानताएँ हैं। फिर भी मूल विधि में कोई अन्तर नहीं है। योगनन्दी विधि
योग प्रवेश के दिन, आचारांग आदि अंगसूत्रों और उनके श्रुतस्कन्धों के आरम्भ एवं समापन के दिन नन्दी विधि होती है। जिस दिन नन्दी हो उस दिन निम्न विधि करनी चाहिए। विधिमार्गप्रपा के अनुसार योगनन्दी विधि इस प्रकार है
सर्वप्रथम जिन मंदिर में अथवा उपाश्रय में समवसरण की स्थापना करें। फिर चारों दिशाओं में एक-एक नमस्कार मन्त्र का स्मरण करते हुए और गुरु भगवन्त को नमस्कार करते हुए तीन प्रदक्षिणा दें।
देववन्दन फिर खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन कर योगवाही बोलें- 'तुम्भे अम्हं अमुगसुयक्खंधाइ-उद्देसाइ निमित्तं चेइयाई वंदावेह'- हे भगवन्!