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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...211 आप हमें अमुक श्रुतस्कन्ध या उद्देशक आदि के निमित्त चैत्यवंदन (देववंदन) आदि क्रिया करवायें। तब गुरु कहते हैं- 'वंदावेमो- मैं देववन्दन करवाता हूँ। तत्पश्चात गुरु योगवाहियों को अपनी बायीं ओर बिठाकर महावीर स्वामी की चार और अंबिका आदि देवी-देवताओं सहित कुल 18 स्तुतियों तथा अरिहाण आदि स्तोत्र पूर्वक देववन्दन करवायें।
द्वादशावर्त्तवंदन- तदनन्तर योगवाही मुनि मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त्तवन्दन करें। फिर नन्दीसूत्र का श्रवण करने के लिए अन्नत्थसूत्र बोलकर आठ श्वासोश्वास परिमाण एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट स्वर में नमस्कार मन्त्र बोलें। यहाँ कुछ परम्पराओं में सत्ताईस श्वासोश्वास (सागरवरगंभीरा तक लोगस्ससूत्र) का कायोत्सर्ग कर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलते हैं।
नन्दीश्रवण- तदनन्तर एक खमासमण देकर योगवाही कहें'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं नंदि सुणावेह' - हे भगवन्! आप हमें अपनी स्वेच्छा से नंदिसूत्र सुनाइये। तब गुरु तीन बार नमस्कार मन्त्र बोलकर नन्दीपाठ सुनाते हैं। कुछ परम्पराओं में निम्न लघुनन्दी पाठ सुनाया जाता है___'नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तंजहा-आभिणिबोहियनाणं, सुयनाणं,
ओहिनाणं, मणपज्जवनाणं, केवलनाणं। तत्थ चत्तारि नाणाई उप्पाई ठवणिज्जाइं, नो उद्दिसिज्जंति, नो समुद्दिसिज्जंति, नो अणुनविज्जति, सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुना अणुओगो पवत्तइ, इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च इमस्स साहुस्स इमाइ साहुणीए वा अमुगस्स अंगस्स, सुयक्खंघस्स वा उद्देसनन्दी अणुण्णानंदी वा पयट्टइ।' ___ कुछ परम्पराओं में बृहद्नंदी का पाठ सुनाते हैं, जो निम्न है
— 'नाणं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा- आभिणिबोहियनाणं, सुयनाणं, ओहिनाणं, मणपज्जवनाणं केवलनाणं। तत्थ चत्तारि नाणाई ठप्पाई ठवणिज्जाई, नो उद्दिसिज्जति, नो समुद्दिसिज्जति, नो अणुनविज्जति। सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ।जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ? अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ? अंग पविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा