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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...209
हमें योग में स्थापित करिये। गुरु बोले 'उक्खेवामो'- मैं योग में स्थापित करता हूँ।
कायोत्सर्ग— उसके बाद योगवाही शिष्य पुनः खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन कर कहें- 'तुब्भे अम्हं जोगोक्खेवावणियं काउस्सग्गं करावेह' - हे भगवन्! आप हमें योग में स्थापित (प्रविष्ट) करवाने के लिए कायोत्सर्ग करवाइये। गुरु कहें- 'करावेमो'- करवाता हूँ। उसके बाद 'जोगोक्खेवावणियं करेमि काउस्सग्गं' एवं अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक लोगस्ससूत्र (चंदेसुनिम्मलयरा तक) अथवा चार नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कुछ परम्पराओं में 'सागरवरगंभीरा' तक एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करते हैं। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें।
वासदान— तत्पश्चात गुरु अंगसूत्र अथवा श्रुतस्कन्ध के उद्देश या अनुज्ञा निमित्त योगवाही मुनियों के मस्तक पर वासचूर्ण डालें। इसके अनन्तर देववंदन, नंदी श्रवण, कायोत्सर्ग आदि रूप नन्दीविधि की जाती है। वह अग्रिम पृष्ठों पर उल्लेखित है। 1
तपागच्छ आदि में योगप्रवेश विधि निम्न प्रकार है
वसतिशोधन - पूर्वनिर्दिष्ट ईर्यापथप्रतिक्रमण पर्यन्त की सर्वक्रिया सम्पन्न करने के पश्चात योगवाही मुनि एक खमासमण देकर कहें- इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! वसहि पवेडं ? गुरु - पवेह | शिष्य- इच्छं कहे। पुनः एक खमासमण देकर कहें- भगवन् सुद्धावसहि- वसति शुद्ध है। गुरुहत्ति कहें।
फिर योगवाही मुनि एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. भगवन्! मुहपत्ति पडिलेहुं? गुरु- पडिलेहेह । शिष्य- इच्छं कहकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें।
वासदान— शिष्यं– खमासमण पूर्वक इच्छकारि भगवन्! तुम्हें अम्हं जोगं उक्खेवेह | गुरु- उक्खेवामि । शिष्य- इच्छं ।
शिष्य- खमासमण पूर्वक इच्छकारि भगवन्! तुम्हें अम्हं जोगउक्खेवाणणी नंदिकरावणी वासनिखेवं करेह । गुरु- करेमि । फिर गुरु तीन नमस्कार मन्त्र गिनकर वासचूर्ण डालते हुए कहें- जोगं उक्खेव, नंदि पवत्तेह, नित्थारपारगाहोह । शिष्य- तहत्ति बोलें।
चैत्यवंदन - उसके बाद शिष्य खमासमण पूर्वक इच्छकारि भगवन् !