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अध्याय-5
योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ
जैन परम्परा में आगमसूत्रों का अभ्यास योगोद्वहन पूर्वक होता है। योगोद्वहन में आयंबिल आदि तप के साथ-साथ कुछ विधियाँ भी सम्पन्न की जाती हैं जैसे- योगप्रवेशविधि, योगनिक्षेप (निर्गमन ) विधि, कालग्रहणविधि, कालमंडल प्रतिलेखन विधि, प्रवेदन विधि, स्वाध्याय प्रस्थापना विधि, वसतिप्रवेदन विधि, नोंतरा विधि, पाटली विधि आदि । इस अध्याय में योगोद्वहन से सम्बन्धित उपर्युक्त विधियाँ प्रस्तुत करेंगे। योग प्रवेश विधि
• जिस दिन योग में प्रवेश करना हो उस दिन नन्दीरचना करवानी चाहिए। यह क्रिया व्रतधारी श्रावक या सौभाग्यवती नारी के द्वारा करवायी जानी चाहिए।
• यदि कालिकसूत्र के योग में प्रवेश कर रहे हों तो योगवाही मुनि सर्वप्रथम कालग्रहण लें, फिर प्रतिक्रमण एवं प्रतिलेखन करें। उसके बाद वसति (उपाश्रय) के चारों तरफ सौ-सौ कदम तक की भूमि का निरीक्षण करें, उस स्थान में हड्डी, रुधिर आदि किसी प्रकार की अशुचि हो तो उसे दूर करवाएँ।
• फिर कालिकसूत्र के योग में प्रवेश किया जा रहा हो तो कालप्रवेदन और स्वाध्याय प्रस्थापना करें।
• तदनन्तर महानिशीथ योगकृत मुनि द्वारा प्रतिलेखित स्थापनाचार्य को अनावृत्त करके उसके चारों ओर अथवा नन्दिरचना के चारों ओर एकएक नमस्कार मन्त्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें।
• फिर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। योग प्रवेश क्रिया नन्दी के समक्ष करें। विधिमार्गप्रपा के अनुसार योगप्रवेश की यह विधि है -
निवेदन- योगवाही मुनि एक खमासमणसूत्र से वंदन कर कहें'इच्छाकारेण तुम्भे अम्हं जोगे उक्खिवेह' - हे भगवन्! आपकी इच्छा हो तो