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योगोद्वहन : एक विमर्श... 199
अपने अनुभव एवं पदार्थ के स्वरूप को व्यक्त नहीं कर पाते हैं। श्रुतज्ञान का आश्रय लिये बिना वे अपने विषयभूत हेयोपादेय विषय से न तो साक्षात रूप में निवृत्त कराते हैं और न ही उसमें प्रवृत्त कराते हैं । इसीलिए उक्त चारों ज्ञानों को अध्ययन-अध्यापन की कोटि में ग्रहण करने योग्य नहीं माना गया है। जो लोकोपकार में प्रवृत्त होता है, वह संव्यवहार्य है, लेकिन मत्यादि चारों ज्ञानों की स्थिति वैसी नहीं है। मति आदि चार ज्ञान लोकोपकार में प्रवृत्त न होने से इनका उद्देश, समुद्देश नहीं होता और न अनुज्ञा - आज्ञा होती है। ये चारों ज्ञान अपनेअपने आवरणीय कर्म के क्षयोपशम एवं क्षय से स्वतः ही आविर्भूत हो जाया करते हैं। अपनी आविर्भूति - उत्पत्ति में उद्देश, समुद्देश आदि की अपेक्षा नहीं रखते हैं। जबकि श्रुतज्ञान संव्यवहार्य अर्थात आदान-प्रदान के योग्य होने के कारण गुरु के उपदेश द्वारा उसकी प्राप्ति होने से, गुरु द्वारा शिष्यों को प्रदान किए जाने से और स्व एवं पर के स्वरूप का प्रतिपादन करने में समर्थ होने से श्रुतज्ञान का उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा आदि किया जाना सम्भव है और जिसके उद्देश आदि होते हैं उसमें अनुयोग आदि की प्रवृत्ति होती है ।
सारांश यह है कि श्रुतज्ञान के अतिरिक्त शेष चार ज्ञान आदान-प्रदान के योग्य नहीं हैं, परोपकारी नहीं हैं, अपितु जिस आत्मा को जो ज्ञान होता है वही उसका अनुभव करता है, अन्य नहीं। किन्तु श्रुतज्ञान परोपकारी है इसीलिए श्रुतज्ञान के उद्देश आदि होते हैं और चारों ज्ञानों का स्वरूपात्मक बोध भी श्रुतज्ञान द्वारा ही किया जाता है। अतः श्रुतज्ञान उद्देशादिरूप (योगोद्वहन योग्य) है, ऐसा निर्विवादतः सिद्ध हो जाता है ।
काल
उत्तराध्ययनसूत्र में काल प्रतिक्रमण, काल प्रतिलेखन, कायोत्सर्ग आदि के स्पष्ट उल्लेख हैं। जैसा कि इसमें कहा गया है- “दिन की प्रथम पौरुषी के चतुर्थ भाग में गुरु को वन्दना करके काल का प्रतिक्रमण ( कायोत्सर्ग) किए बिना ही भाजन (पात्र) का प्रतिलेखन करे । " 97 सामान्यतया स्वाध्याय से उपरत होने पर प्रतिक्रमण (कायोत्सर्ग) करके दूसरा कार्य प्रारम्भ करना चाहिए, किन्तु उसके प्रतिवाद में उक्त बात कही गई है। इसका आशय है कि चतुर्थ पौरुषी में पुनः स्वाध्याय करना चाहिए। स्वरूपतः काल प्रतिक्रमण आदि से कालग्रहण और कालग्रहण से कालिक सूत्रों के योग और कालिक सूत्रों के योग से उत्कालिक आदि सूत्रों के योग की भी सिद्धि हो जाती है, किन्तु योग सम्बन्धी