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________________ 194... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण जैन दर्शन में योग शब्द अनेक अर्थों में व्यवहृत है । यहाँ योग, योगवाही, योगोपधान आदि कई शब्द प्राप्त होते हैं । सूत्रकृतांगसूत्र में 'जोगवं' शब्द का उल्लेख संयम अर्थ में हुआ है। 84 स्थानांगसूत्र में 'जोगवाही' शब्द समाधि में स्थित आसक्त पुरुष के लिए प्रयुक्त हुआ है। 85 उत्तराध्ययनसूत्र में योग शब्द कई बार उल्लिखित है। इसमें 'जोगवं उवहाणवं' शब्द समाधिवान अथवा मन, वचन, काया के योग व्यापार से युक्त - इस अर्थ में प्रयुक्त है।86 इस आगमसूत्र में यह भी कहा गया है कि जैसे वाहन (गाड़ी आदि) में जोड़े हुए विनीत वृषभ आदि को हांकता हुआ पुरुष अरण्य को सुख पूर्वक पार कर लेता है उसी तरह योग (संयम व्यापार) में सम्यक प्रकार से प्रवृत्त हुए शिष्यों का निर्वाहन करते हुए आचार्यादि संसार को सुख पूर्वक पार कर लेते हैं। 87 यहाँ ‘योग’ शब्द संयम साधना के अर्थ में प्रयुक्त है । आचारांगसूत्र में साधु के लिए धूत- अवधूत शब्दों का प्रयोग किया गया है88 जबकि वैदिक एवं बौद्ध साहित्य में ये शब्द योगी के लिए प्रयुक्त हुए हैं। उपाध्याय यशोविजयजी ने समिति और गुप्ति की साधना को योग का अंग माना है 1 89 भगवतीसूत्र में कहा गया है कि अपने योग व्यापार को किसी एक शुभ आलम्बन में केन्द्रित करने का अभिप्राय है कि साधक ध्यान में कम से कम एक समय और अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त्त तक स्थिर रह सकता है स्पष्ट है कि जैन साहित्य में योग शब्द संयम, समाधि एवं ध्यान के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। दूसरी ओर मन-वचन-काया के शुभाशुभ व्यापार को भी योग कहा गया है, किन्तु वहाँ भी शुभयोग को ही प्रधानता दी गई है। समष्टि रूप में कहा जा सकता है कि योगोद्वहन श्रुत (ज्ञान) धर्म के अभ्यास पूर्वक चारित्र धर्म का निर्दोष पालन करते हुए, ध्यान आदि शुभ आलम्बनों द्वारा आत्म समाधि (मोक्ष पद) को उपलब्ध करने के उद्देश्य से ही किया जाता है। वही वाच्यार्थ उक्त ग्रन्थों में दर्शाया गया है | 90 योगोद्वहन की ऐतिहासिक विकास यात्रा देहधारी प्राणियों की जीवन-यात्रा मानसिक, वाचिक एवं कायिक व्यापार पर आश्रित है। जैनागमों में मन-वचन और शरीर की शुभाशुभ प्रवृत्ति को योग कहा गया है। शुभयोग से पूर्वोपार्जित कर्मों की निर्जरा या पुण्य कर्म का बंध होता है और अशुभ योग से नवीन कर्मों का बंधन होता है । शुभाशुभ प्रवृत्ति से
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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