SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ...193 वस्तुएँ देवता द्वारा अधिष्ठित होती हैं- इस आधार पर कहा जा सकता है कि सूत्र देवता अधिष्ठित हैं।76 भारतीय दर्शन की विविध परम्पराओं में योगोद्वहन ____'योग' समस्त भारतीय दर्शनों का केन्द्र बिन्दु रहा है। यद्यपि 'योगोद्वहन' इस नाम का उल्लेख जैन साहित्य में ही उपलब्ध होता है किन्तु 'योग' शब्द का प्रयोग इतर परम्पराओं में भी दृष्टव्य है। जहाँ तक वैदिक दर्शन का सवाल है वहाँ सर्वप्रथम ऋग्वेद में 'योग' शब्द मिलता है। यहाँ इसका अर्थ जोड़ना मात्र किया गया है।7 उपनिषद् साहित्य में 'योग' पूर्णत: आध्यात्मिक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। कुछ उपनिषदों में योग एवं योग-साधना विषयक विस्तृत वर्णन किया गया है।78 महाभारत में योग के विभिन्न अंग उल्लिखित हैं। स्कन्दपुराण में कई स्थानों पर योग की चर्चा की गई है।80 भगवतपुराण में अष्टांग योग के साथसाथ तज्जनित लब्धियों आदि का भी वर्णन है।81 गीता के अठारह अध्याय योग नाम पर आधारित हैं, जैसे- ज्ञानयोग, भक्तियोग, आत्मयोग, बुद्धियोग, सातव्ययोग, ब्रह्मयोग आदि। गीता का दूसरा नाम योगशास्त्र भी है।82 हम देखते हैं कि वैदिक दर्शन में योग का क्रमशः विकास हुआ है। ऋग्वेद काल में योग का अर्थ जोड़ना मात्र था, औपनिषद् काल में वह अध्यात्म साधना के रूप में प्रयुक्त हुआ और गीता काल तक आते-आते अत्यन्त व्यापक और प्रचलित हो गया, जिसके फलस्वरूप गीता के अठारह अध्यायों के नाम ही योग पर रख दिये गये तथा उनका सम्बन्ध आध्यात्मिक साधना से ही जुड़ा रहा। जहाँ तक बौद्ध आदि दर्शनों का सवाल है वहाँ न्यायदर्शन प्रणेता महर्षि पतंजलि ने 'योगदर्शन' नाम का ग्रन्थ ही रच डाला है। वैशेषिक दर्शन के प्रणेता कणाद ने भी यम-नियम आदि पर प्रकाश डाला है। ब्रह्मसूत्र के तीसरे अध्याय में आसन, ध्यान आदि योग के अंगों का स्पष्ट वर्णन है अत: इसका नाम ही साधनपाद है। सांख्यदर्शन में योग विषयक अनेक सूत्र हैं। बौद्धदर्शन क्षणिकवादी है यद्यपि उनके विसुद्धिमग्गो, समाधिराज, अंगुत्तरनिकाय आदि ग्रन्थों में ध्यान, समाधि आदि योगिक विषयों का निरूपण किया गया है। अंगुत्तरनिकाय में वर्णन आता है कि तथागत बुद्ध ने बोधित्व प्राप्त करने से पूर्व श्वासोश्वास निरोध अर्थात प्राणायाम साधना की थी। वर्तमान युग की विपश्यना पद्धति बौद्धानुयायियों द्वारा ही प्रवर्तित है।83
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy