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________________ 192... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण नव्य युग की समस्याएँ एवं योगोद्वहन सामाजिक एवं वैश्विक स्तर पर व्याप्त अनेकविध समस्याओं के समाधान में भी योगोद्वहन का महत्त्वपूर्ण स्थान हो सकता है। शिक्षा के स्तर एवं उसकी निष्प्राणता को सुधारने में यह एक महत्त्वपूर्ण क्रिया हो सकती है। अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने एवं उनमें आनंदमय रहने के लिए यह औषधि का कार्य करती है। आज सामुदायिक स्तर पर देखे तो चाहे Office हो या बड़ी-बड़ी Companies या फिर पारिवारिक संघटन सभी स्थानों पर आपसी सहयोगवृत्ति कम होती जा रही है तथा इसके विपरीत ईर्ष्या भावना, प्रतियोगी भावना आदि का वर्धन हो रहा है। इन सबसे व्यक्ति व्यक्तिगत स्तर पर प्रगति भले ही कर ले परन्तु वह प्रगति कभी भी संतोष एवं आत्मसुख में हेतुभूत नहीं बन सकती। योगोद्वहन में योगवाही मुनि के लिए कालग्राही दंडीधर मुनि आदि भी अपनी ओर से प्रत्येक संभव सहायता करते है, तो ज्ञानयुत वाचनाचार्य आदि निस्पृह एवं निरपेक्ष भाव से अपना ज्ञान प्रदान करते है। इसी प्रकार समाज का प्रत्येक तबका यदि अपनेअपने में रही योग्यता के अनुसार समाज एवं देश के उत्थान में सहयोगी बने तो एक आदर्श प्रस्तुत कर सकते है। ऐसे ही आजकल अपात्र व्यक्तियों को ज्ञान देने से ज्ञान का दुरुपयोग भी बढ़ रहा है इसका एक मुख्य कारण है ज्ञान की सहज उपलब्धि एवं गणों की अपेक्षा पैसे के आधार पर उसका आदान-प्रदान। योगोद्वहन में अनेक प्रकार की योग्यताएँ एवं उसके साथ कठिन साधना करने वाले, ज्ञानार्जन हेतु अपने सर्वस्व को समर्पित करने वाले तथा पूर्ण जागरूकता एवं बहुमानपूर्वक ज्ञान लेने वाले व्यक्ति को ही ज्ञान दिया जाता है। स्वभावत: दुर्लभतापूर्वक प्राप्त वस्तु का व्यक्ति सही मूल्यांकन भी करता है। ऐसे ही कठिनता पूर्वक ज्ञान का भी व्यक्ति उचित समादर करता है। अत: योगोद्वहन एक सुसभ्य, सुज्ञ एवं सुसंस्कृत समाज के निर्माण का अभिन्न अंग है। सूत्र पाठ देवता अधिष्ठित कैसे? यह अवधारणा दीर्घकाल से मान्य रही है कि आगमसूत्र देवता अधिष्ठित होते हैं। इस बात का समर्थन करते हुए व्यवहारभाष्य में कहा गया है कि सूत्र सर्वज्ञ भाषित है, इसलिए सर्व लक्षण सम्पन्न है। संसार में लक्षण सम्पन्न सब
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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