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योगोवहन : एक विमर्श... 191
उस कार्य में सहज निपुणता या अधिकार प्राप्त कर लेता है। आज के Education युग में जहाँ हर कार्य के लिए उचित Qualification और Degree चाहिए वहाँ पर अध्ययन करने वालों की Quantity और अध्ययन के प्रकार भले ही बढ़ गए हैं पर अध्ययन तथा अध्यापक आदि के प्रति बहुमान, आंतरिक जुड़ाव एवं Quality में अपेक्षाकृत न्यूनता ही आई है। इन परिस्थितियों में यदि योगोद्वहन की जो अध्ययन रीति है उसे अपनाया जाए तो शिक्षा के घटते हुए स्तर एवं उसके व्यवसायीकरण को अवश्य सुधारा जा सकता है।
यदि प्रबंधन की अपेक्षा से योगोद्वहन की विविध विधियों का मूल्यांकन किया जाए तो सर्वप्रथम वर्तमान युग में शिक्षा क्षेत्र के सम्यक संचालन में यह अत्यन्त उपयोगी बन सकती है। इसी प्रकार वैयक्तिक जीवन के उत्कर्ष, स्वाभाविक मानवीय गुणों के उत्थान एवं जीवन निर्माण में योगोवहन मुख्य भूमिका निभाते हुए एक उच्च व्यक्तित्व का सृजन कर सकती है। इसकी समयबद्ध क्रियाएँ समय के नियोजन एवं उसके अधिकाधिक उपयोग का संदेश देती है। इसी के साथ इस क्रिया में गुरु तथा सहोदर मुनियों के सहयोग एवं मार्गदर्शन की भी पूर्ण आवश्यकता रहती है, जो समुदायवर्ती साधुओं में सामंजस्य एवं मैत्री की स्थापना करती है।
प्रत्येक कार्य करने का एक उचित काल होता है एवं उसी काल में करने पर वह लाभकारी होता है। इसीलिए योगोद्वहन हेतु कालग्रहण, काल प्रवेदन, नोतरा आदि कई क्रियाएँ बताई गई है। इसी प्रकार संघट्टा ग्रहण, संघाटक मुनि आदि के माध्यम से आपसी समन्वय एवं एक दूसरे को समझने का गुण विकसित होता है। यदि यह सभी गुण प्रत्येक व्यक्ति में विकसित हो जाए तो उस व्यक्ति का जीवन Well-managed तो बनेगा ही साथ ही सुखी एवं सुव्यवस्थित परिवार एवं समाज की व्यवस्था में भी सहयोग प्राप्त होगा। इसी तरह प्राचीन शास्त्रों का पारायण करने से उनका भी बार-बार निरीक्षण होता रहता है जिससे ग्रन्थों में जीव आदि नहीं लगते एवं Library आदि का भी व्यवस्थापन समुचित रूप से होता रहता है। इन सब तथ्यों से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि योगोद्वहन क्रिया के माध्यम से Education system management, personal development, group management, scripture & library management, time punctuality & time management आदि कई प्रकार के नियोजन एवं प्रबंधन में मार्गदर्शन प्राप्त हो सकता है।