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190... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
योगोद्वहन योग्य व्यक्ति, काल आदि का भी निर्वचन शास्त्रकारों ने किया है क्योंकि माहौल या वातावरण ज्ञानार्जन का मुख्य घटक होता है। एक व्यक्ति College या Tution में तो पढ़ाई कर सकता है, पर यदि किसी को Cinema Hall या Disco में जाकर Exam की तैयारी करने को कहें तो मूर्खता होगी वैसे ही आगम शास्त्रों के ज्ञानार्जन हेतु विविध मर्यादाओं का उल्लेख किया गया है। -
इसी क्रम में योगवहन करते हुए तप विशेष का भी उल्लेख किया गया है। तप पूर्वक अध्ययन करने से ज्ञानार्जन हेतु पर्याप्त समय मिल जाता है। साथ ही गरिष्ठ भोजन, अति भोजन आदि न करने से प्रमाद भी नहीं आता तथा अधिक सजगतापूर्वक आगमों का आलोडन हो सकता है। जैसे एक M.D. करने वाले Intern doctor को Hospital में 24 घंटे Duty देनी पड़ती है और तब ही वह किसी विषय का विशेषज्ञ बन सकता है वैसे ही सजगतापूर्वक एवं प्रमाद रहित होकर किया गया अध्ययन ही विषय को अधिकृत करने में सहायक बनता है।
विधि-निषेध, कल्प्य-अकल्प्य आदि की सामाचारी अनुशासन एवं मर्यादायुक्त जीवन जीने में विशेष मार्गदर्शक बनती है। योगवाही के द्वारा इस Exam Period को जितनी सजगता पूर्वक व्यतीत किया जाता है वह उसके भविष्य निर्माण के लिए उतना ही श्रेयस्कर होता है । साररूप में कहें तो योगोवहन मुनि जीवन का Turning Point of Life है। शिक्षा प्रबंधन का आवश्यक अंग - योगोद्वहन
जैनाचार में योगोद्वहन को एक विशेष स्थान प्राप्त है। मुनि जीवन का मूल आधार स्वाध्याय है क्योंकि यह मुनि को मुनि धर्म में रमण करने की कला सिखाता है। यदि व्यावहारिक एवं सामाजिक क्षेत्र में हम इस विधि की उपादेयता के विषय में मनन करें तो योगोवहन मुनि के ज्ञान एवं गुणों को परिपक्व बनाता है। ऐसा मुनि ही समाज को यथोचित आगमोक्त मार्गदर्शन देते हुए सुदृढ़, सुज्ञ एवं अनुकरणीय समाज का नव निर्माण कर सकता है। सम्यक् ज्ञान होने पर ही युवा मनो में रही विभ्रान्त मान्यताओं एवं शंकाओं का निवारण कर सकता है।
योगोद्वहन अध्ययन करने की परिष्कृत प्रक्रिया है। जब व्यक्ति मर्यादा, अनुशासन, सजगता एवं समर्पण के साथ किसी भी कार्य को करता है तो वह