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योगोद्वहन : एक विमर्श ...189 सकती है। स्वाध्याय हेतु उपयोगी ग्रन्थों को हानि पहुँच सकती है। स्वाध्याय में एकाग्रता न होने से कई बार विपरीत अर्थ का भी ग्रहण हो जाता है, जो कि अनर्थकारी है। ऐसी परिस्थितियों में किया गया स्वाध्याय या अध्ययन मात्र मानसिक श्रम में ही हेतुभूत बनता है।
इसी प्रकार अशुचि स्थानों में, महोत्सव के दिनों में, प्रतिपदा आदि के दिन किया गया स्वाध्याय आम जनता के मन में जिनधर्म के प्रति हीलना के भाव उत्पन्न कर सकता है तथा इन स्थितियों में मानसिक अवस्था सदा चंचल या अस्थिर होती है जबकि स्वाध्याय में स्थिरता सर्वाधिक अपेक्षित है। इसी तरह नगर में शोक हो या संकट विशेष का माहौल हो तब स्वाध्याय करने से आम जनता में विरोधाभास भी उत्पन्न हो सकता है अत: वैयक्तिक, मानसिक, व्यावहारिक आदि अनेक परिप्रेक्ष्यों में इस विधि की मूल्यवत्ता है।
योगोद्वहन यह आगमों पर अधिकार प्राप्त करने की क्रिया है अत: अधिकार प्राप्त कर्ता के लिए अनेक प्रकार के नियमोपनियम निर्देशित है। यदि वर्तमान समय की अपेक्षा चिंतन करें तो इसके बहुत से लाभ समझ में आते हैं। सर्वप्रथम आगम अध्येता के लक्षणों की चर्चा करें तो अनेक प्रकार के गुणों का वर्णन योगवाही के लिए किया गया है। जैसे कि योगवाही विनीत, लज्जालु, महासत्त्ववाला, सरल परिणामी, दृढ़धर्मी, कषाय विजेता, निद्राजयी आदि हो। इन सब गुणों का धारक होने से वह शास्त्रकारों के अभिप्राय को अधिक स्पष्टता के साथ समझ सकता है तथा किसी एक विषय में आग्रह बुद्धि नहीं रखता। इसी के साथ प्रत्येक आगम अध्ययन के लिए कुछ विशेष नियम-मर्यादाएँ भी बतलाई गई हैं जैसे कि अमुक दीक्षा पर्याय वाला अमुक-अमुक आगम का अध्ययन कर सकता है और उसमें भी उसने यदि उससे पूर्व नींव के रूप में अमुक-अमुक आगमों का अध्ययन कर लिया हो तो। इससे यह स्पष्ट है कि योग्य (Qualified) पात्र को ही आगम ज्ञान दिया जाता है। आयु के साथ बुद्धि कई प्रकार से स्वयमेव विकसित होती है जिससे व्यक्ति रहस्यमयी सूत्रों के गंभीर गूढार्थमयी तथ्यों को समझ सकता है। जिस प्रकार Post Graduation करने वाले को पहले 10th, 12th, Graduation की क्लास को पास करना पड़ता है तब वह Post Graduation के योग्य बनता है वैसे ही मुनियों को आगम शास्त्र भी क्रम से पढ़ाए जाते हैं जिससे विषय को समझने एवं उस पर अधिकार करने में सुगमता हो। इसी प्रकार योग प्रवर्तक गुरु, योगोद्वहन सहायक मुनि,