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________________ 184... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण निषिद्ध है क्योंकि इन ग्रन्थों को भूतवाद कहा गया है। इनमें मन्त्र, भूत-प्रेत, मारण, उच्चाटन आदि अलौकिक शक्तियों का वर्णन है।66 योगोद्वहन काल में करणीय अनुष्ठानों का क्रम उत्कालिक सूत्रों के योग में अनुष्ठानों का क्रम पहले दिन योग प्रवेश की विधि करें। • फिर नन्दी क्रिया करें। • फिर जिस सूत्र के योग में प्रवेश किया गया है उसके उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। • फिर प्रवेदना विधि करें। • इसी क्रम में मुनि जीवन की दैनिक चर्याएँ जैसे प्रतिलेखना, भिक्षाचर्या आदि सम्पन्न करें। प्रतिदिन प्रात:काल में प्रतिक्रमण एवं प्रतिलेखना आदि करें। • फिर गुरु के समक्ष जिस सूत्र का योग चल रहा है, उसके उद्देश- समुद्देशादि करें अर्थात उस सूत्र पाठ की वाचना लें। • फिर प्रवेदन विधि करें। तत्पश्चात मुनि जीवन की दैनिक चर्याओं का पालन करें। कालिक सूत्रों के योग में क्रियानुष्ठानों का क्रम • सूर्योदय होने से कुछ समय पूर्व नोंतरा विधि करें। • फिर प्राभातिक काल का ग्रहण करें। • साथ इसी के कालमंडल की प्रतिलेखना करें। • तदनन्तर रहने योग्य वसति का प्रमार्जन कर निकले हुए अशुचि द्रव्य का परिष्ठापन करें तथा वसति के चारों ओर सौ-सौ हाथ पर्यन्त भूमि का निरीक्षण करें। फिर गुरु के निकट आकर 'वसति शुद्ध है' और 'काल शुद्ध है' इस प्रकार वसति एवं काल की शुद्धि का प्रवेदन करें। • उसके बाद स्वाध्याय प्रस्थापना करें। • तत्पश्चात पाटली क्रिया (कालमंडल का प्रतिक्रमण) करें। यदि अंग सूत्र या श्रुतस्कन्ध का उद्देश या अनुज्ञा करनी हो तो नंदी क्रिया करें। • फिर प्रवेदन विधि करें अर्थात जिस सूत्र का योग चल रहा हो, उस सम्बन्धी समस्त क्रियाओं का निवेदन करें और उन्हें नियत समय पर करने की अनुमति ग्रहण करें। • फिर जिस सूत्र का योग चल रहा हो, उसके उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। फिर संघट्ट (पात्रादि) ग्रहण एवं आउत्तवाणय विधि (अत्यन्त सजग रहने की प्रतिज्ञा) करें। तदनन्तर सन्ध्याकाल में संघट्टा एवं आउत्तवाणय से निवृत्त होने की क्रिया करें अर्थात उक्त क्रियाओं में लगे हुए दोषों का प्रतिक्रमण करें। फिर सन्ध्याकाल में प्रादोषिक काल ग्रहण करें। इसके अतिरिक्त साधु जीवन की सभी आवश्यक क्रियाओं को सम्पन्न करें।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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