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________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ...183 सम्यग्दर्शनादि चार आराधनाओं का स्वरूप कहने वाले ग्रन्थ, सत्रह प्रकार के मरण का वर्णन करने वाले ग्रन्थ, पंचसंग्रह ग्रन्थ, स्तुति ग्रन्थ, आहार आदि के त्याग का उपदेश करने वाले ग्रन्थ, सामायिक आदि छह आवश्यक क्रियाओं का प्रतिपादन करने वाले ग्रन्थ, महापुरुषों के चारित्र का वर्णन करने वाले ग्रन्थ तथा अन्य भी इस तरह के ग्रन्थ अस्वाध्याय काल में पढ़े जा सकते हैं।60 दिगम्बर मतानुसार वर्तमानकाल में षटखण्डागम सूत्र, कषायपाहुड़ सूत्र और महाबंध सूत्र अर्थात धवला, जयधवला और महाधवला जैसे टीका ग्रन्थ सूत्र माने जाते हैं, चूँकि वीरसेनाचार्य ने धवला, जयधवला टीका में इन्हें सूत्र सदृश मानकर सूत्र ग्रन्थ कहा है अत: ये ग्रन्थ अस्वाध्याय-काल में नहीं पढ़े जाते हैं। इनसे अतिरिक्त ग्रन्थों को अस्वाध्याय काल में पढ़ा जा सकता है। साध्वियों के लिए मूल आगम पढ़ने का निषेध क्यों वर्तमान परम्परा में साध्वी को सभी आगम सूत्रों के अध्ययन-योगोद्वहन करने का अधिकारी नहीं माना गया है किन्तु जब आगमसूत्रों का गहराई से अध्ययन करते हैं तो अन्तकृतदशा में यक्षिणी आर्या के सान्निध्य में पद्मावती आदि61 तथा चन्दना आर्या के सान्निध्य में काली आदि के द्वारा 11 अंगों के अध्ययन करने का उल्लेख किया गया है।62 इसी प्रकार ज्ञाताधर्मकथा में सुव्रता आर्या के सान्निध्य में द्रौपदी द्वारा 11 अंगों के अध्ययन करने का सूचन है।63 ___ डॉ. अरुणप्रताप सिंह के अनुसार बौद्ध ग्रन्थ थेरीगाथा में भी कुछ विदुषी जैन साध्वियों के द्वारा शास्त्र अध्ययन करने का निर्देश है।64 यद्यपि उक्त ग्रन्थों में 11 अंगों के अध्ययन का जो निर्देश किया गया है वह सम्भवतः मूल पाठ न होकर अर्थ पाठ ही होना चाहिए, क्योंकि कुछ शास्त्र इतने महत्त्वपूर्ण होते हैं कि वे आचार्य आदि पदस्थ भिक्षु के द्वारा ही ग्रहण किये जा सकते हैं। दूसरे, यहाँ जैन भिक्षुणियों के लिए 11 अंगों के अध्ययन करने का ही उल्लेख किया गया है, इससे 12वाँ दृष्टिवाद अंग के पढ़ने का स्वतः निषेध हो जाता है। बृहत्कल्पभाष्य में 12वें अंगसूत्र को न पढ़ने के साथ-साथ इस नियम की पुष्टि में तर्क देते हुए बतलाया है कि स्त्री जाति निम्न प्रकृति वाली, गर्वीली, चंचल तथा दुर्बल बुद्धि वाली होती हैं अतः दृष्टिवाद जैसे मन्त्र-तन्त्र प्रधान ग्रन्थ को पूर्ण रूप से आत्मस्थ कर लेना साध्वी के लिए असम्भव है।65 आगमिक व्याख्याओं में भिक्षुणी के लिए महापरिज्ञा, अरुणोपपात आदि ग्रन्थ भी पढ़ने का
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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