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182... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
दिगम्बरमान्य मोक्षमार्ग प्रकाशक के उल्लेखानुसार सर्वप्रथम द्रव्यानुयोग का अध्ययन करना चाहिए। उसके बाद क्रमश: प्रथमानुयोग, चरणानुयोग एवं करणानुयोग का अभ्यास करना चाहिए। इस क्रम से अध्ययन करने का यह प्रयोजन बतलाया गया है कि सबसे पहले तत्त्व का सच्चा ज्ञान होना चाहिए, इसलिए द्रव्यानुयोग पढ़े। उसके बाद पुण्य-पाप के फल की जानकारी हेतु प्रथमानुयोग पढ़े। फिर शुद्धोपयोग से आत्मा को मोक्ष का अधिकारी मानते हुए तदनुरूप आचरण करने के उद्देश्य से चरणानुयोग का अभ्यास करें। इसके बाद गुणस्थान-मार्गणादि जीव का व्यावहारिक स्वरूप समझने हेतु करणानुयोग का अभ्यास करें। दिगम्बर मतानुसार उक्त क्रम से श्रद्धान पूर्वक आगम का अभ्यास किया जाए तो सम्यक ज्ञान होता है। कौनसा आगम कब पढ़ना चाहिए?
दशाश्रुतस्कन्ध टीका में आगम सूत्रों के स्वाध्याय काल का निर्धारण करते हुए कहा गया है कि नन्दी, अनुयोगद्वार एवं दशवैकालिक- ये सूत्र अस्वाध्याय काल के अतिरिक्त शेष सभी काल में पढ़े जा सकते हैं। आवश्यकसूत्र का स्वाध्याय अहोरात्रि के सर्व कालों में किया जा सकता है।58
आचारांग आदि ग्यारह अंग शास्त्रों के श्रुतस्कन्ध, अध्ययन, उद्देशक आदि दिवस के प्रथम प्रहर में पढ़ने चाहिए, मध्य प्रहर में नहीं। इसी प्रकार रात्रि के प्रथम एवं अन्तिम प्रहर में पढ़ने चाहिए, रात्रि के मध्यकाल में नहीं।
अंगबाह्य शास्त्रों के अध्ययन एवं उद्देशक आदि का स्वाध्याय रात्रि काल में भी होता है। दिगम्बर आचार्य वट्टकेर मुनियों के लिए नियमित एवं अनियमित तथा विधि युक्त पढ़े जाने योग्य शास्त्रों का उल्लेख करते हुए कहते हैं- गणधर कथित अंग, श्रुतकेवली कथित चौदह पूर्व एवं वस्तु और अभिन्न दशपूर्वी कथित प्राभृत-प्राभृत, ये सूत्र कहलाते हैं अथवा तीर्थंकर परमात्मा के मुख कमल से निसृत अर्थ को ग्रहण कर गौतम आदि गणधर मुनियों द्वारा सूत्र रूप में रचित अंग, पूर्व वस्तु और प्राभृतक आदि सूत्र कहलाते हैं।59
मूलाचार के अभिप्राय से उपर्युक्त प्राभृतक आदि चार प्रकार के सूत्र अस्वाध्याय काल में मुनि वर्ग और आर्यिकाओं को नहीं पढ़ने चाहिए। इन सूत्रों के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थ काल शुद्धि आदि के बिना भी पढ़े जा सकते हैं। जैसे