SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योगोदवहन : एक विमर्श ...181 उदाहरणों के द्वारा भी पुष्ट कर सकते हैं जैसे व्यावहारिक शिक्षण में भी क्रमबद्ध पढ़ने की ही व्यवस्था है। औषध सेवन के सम्बन्ध में भी यही क्रम अपनाया जाता है पहले सामान्य दवा दी जाती है फिर जैसे-जैसे रोग मन्द पड़ता है वैसेवैसे पुष्टिकारी औषध देते हैं। नवजात शिशु के सम्बन्ध में भी यही देखा जाता है कि उसे प्रथम माता का स्तनपान करवाते हैं, फिर दूध देते हैं और फिर धीरेधीरे अन्न खिलाया जाता है अन्यथा विपरीत क्रम अपनाने पर मृत्यु जैसी स्थिति भी पैदा हो सकती है। तब जो दोष आत्मा के साथ अनादिकाल से सम्पृक्त हैं उन्हें दूर करने के लिए ज्ञानरूपी औषध का सेवन भी क्रम एवं विधि पूर्वक करना अत्यन्त जरूरी है। जो श्रमण स्वच्छंद वृत्ति के कारण जब चाहे तब कुछ भी पढ़ लेता है वह स्वयं के ज्ञान से ही स्व-आत्मा का अहित कर लेता है अतएव पूर्व निर्दिष्ट अध्ययन क्रम को उपकारक समझकर तथाविध आचरण करना चाहिए। आगम शास्त्रों के अध्ययन-अध्यापन (योगोद्वहन) का क्रम वर्तमान श्वेताम्बर परम्परा में आगम सूत्रों के योग निम्न क्रम से करवाये जाते हैं- सबसे पहले 1. आवश्यकसूत्र 2. दशवैकालिकसूत्र 3. उत्तराध्ययनसूत्र 4. आचारांगसूत्र 5. कल्पसूत्र- इसमें निशीथ, बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कन्ध को समाहित करके इन सूत्रों के योग निर्दिष्ट क्रम से करवाए जाते हैं। 6. फिर महानिशीथसूत्र 7. औपपातिक आदि प्रारम्भ के चार उपांग सूत्र के योग करवाये जाते हैं। यहाँ ध्यातव्य है कि महानिशीथ के योग करवाने के पश्चात प्रकीर्णक सूत्रों के योग करवाए जाते हैं। तदनन्तर उपांग सूत्रों के योग एक साथ या पृथक-पृथक भी कर सकते हैं। मतान्तर से आचारांग एवं कल्पसूत्र के योगवहन के बाद भी इनके योग करवाए जा सकते हैं अथवा प्रत्येक अंगसूत्र के योग के बाद भी उससे प्रतिबद्ध उपांगसूत्र का योग किया-करवाया जा सकता है। इस नियम के अनुसार महानिशीथ के बाद 8. नंदी सूत्र 9. अनुयोगद्वार 10. प्रकीर्णकसूत्र 11. सूत्रकृतांगसूत्र 12. स्थानांगसूत्र 13. समवायांग सूत्र 14. भगवतीसूत्र 15. ज्ञाताधर्मकथासूत्र 16. उपासकदशासूत्र 17. अंतकृतदशासूत्र 18. अनुत्तरोपपातिकसूत्र 19. प्रश्नव्याकरणसूत्र 20. विपाकश्रुत के योग करवाये जाते हैं। उपांग सूत्रों के योग उनसे प्रतिबद्ध अंग सूत्रों के योग के पश्चात या सभी अंग सूत्रों के योग पूर्ण होने के बाद करवाए जाते हैं।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy