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योगोद्वहन : एक विमर्श ... 179
आवश्यकसूत्र का अध्ययन तो उपस्थापना के पूर्व ही कर लिया जाता है। व्यवहारभाष्य में आचारांग एवं निशीथ के पूर्व दशवैकालिकसूत्र और उत्तराध्ययनसूत्र के अध्ययन करने का भी निर्देश किया गया है। दशवैकालिकसूत्र के सम्बन्ध में ऐसी धारणा प्रचलित है कि भद्रबाहुस्वामी से पूर्व शय्यंभवसूरि ने इस सूत्र की रचना अपने पुत्र 'मनक' के लिए की थी। फिर संघ आग्रह से इस निर्यूढ सूत्र को पुनः पूर्वों में विलीन नहीं कर इसे स्वतंत्र रूप में ही रहने दिया। उत्तराध्ययनसूत्र के लिए भी ऐसी परम्परा प्रचलित है कि इस सूत्र में संकलित 36 अध्ययन भगवान महावीर की अंतिम देशना रूप है। उस समय देशना सुनकर किसी स्थविर ने उसे सूत्र रूप में गूंथा है।
किन्तु आगम अध्ययनक्रम में इन दोनों सूत्रों को स्थान नहीं दिए जाने के कारण एवं ऐतिहासिक साक्ष्यों का सूक्ष्म बुद्धि से परिशीलन करने पर सहज ही यह निष्कर्ष निकलता है कि उक्त दोनों सूत्रों से सम्बन्धित पूर्वोक्त धारणाएँ काल्पनिक हैं। वस्तुत: ये सूत्र भद्रबाहुस्वामी के पश्चात और देवर्द्धिगणी के पूर्व किसी काल में संकलित किए गए हैं। अतः इन दोनों सूत्रों का रचनाकाल व्यवहारसूत्र की रचना के बाद मानने में कोई आपत्ति नहीं है । किन्तु इन्हें उसके पहले के आचार्यों द्वारा रचित मानने पर व्यवहारसूत्र के अध्ययनक्रम में इनका निर्देश न होना विचारणीय बनता है। 54
दूसरा पक्ष यह भी उल्लेखनीय है कि तीन वर्ष पर्याय आदि का जो कथन किया गया है उनका दो तरह से अर्थ किया जा सकता है - 1. दीक्षा पर्याय के तीन वर्ष पूर्ण होने पर उन आगमों का अध्ययन करना चाहिए। 2. तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय हो जाने पर योग्य मुनि को कम से कम आचारांग का अध्ययन कर लेना या करवा देना चाहिए । आचार्य मधुकर मुनि के अनुसार उक्त दोनों अर्थों में दूसरा अर्थ आगमानुसारी है। 55
तीसरा पक्ष यह है कि दस वर्ष की दीक्षा पर्याय के बाद में अध्ययन हेतु कहे गए सूत्रों में से प्रायः सभी सूत्र नंदीसूत्र की रचना के समय कालिकश्रुत में उपलब्ध थे, किन्तु वर्तमान में उनमें से कोई भी सूत्र उपलब्ध नहीं है, केवल 'तेजनिसर्ग' नामक अध्ययन भगवतीसूत्र के पंद्रहवें शतक में उपलब्ध है।
ज्ञाताधर्मकथा आदि अंगसूत्रों का प्रस्तुत अध्ययन क्रम में निर्देश नहीं किया गया है। इसका कारण यह है कि इन सूत्रों में प्रायः धर्म कथाओं का वर्णन हैं जिनके क्रम की कोई आवश्यकता नहीं रहती है, अनुकूलता के अनुसार इन