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________________ 178... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण दिशाओं को उद्योतित करते हुए परावर्त्तक मुनि के समक्ष बद्धांजलि पूर्वक उपस्थित होते हैं और पूछते हैं - मुनिवर ! आज्ञा दीजिए, हमें क्या कार्य करना है? वरुणदेव गन्धोदक आदि की वर्षा करते हैं । अरुण और गरुड़ देव सुवर्ण दान करते हैं। जब तेरह वर्ष की संयम पर्याय वाला मुनि कार्य विशेष से एकाग्रचित्त होकर उत्थानश्रुत का अध्ययन करता है तब वहाँ के कुल, ग्राम और देश आदि उजड़ जाते हैं। जब कार्य निष्पन्न होने पर समुत्थान श्रुत का परावर्तन होता है तब कुल, ग्राम आदि पुन: बस जाते हैं। देवेन्द्र परिज्ञापनिका का अध्ययन करने पर देवेन्द्र तथा नागपरिज्ञापनिका का अध्ययन करने पर नाग जाति के देव उपस्थित होते हैं। चौदह वर्ष की संयम पर्याय वाले मुनि द्वारा महास्वप्न भावना अध्ययन का परावर्तन करने पर वह तीस सामान्य स्वप्न तथा बयालीस महास्वप्नों का पूर्ण ज्ञाता बन सकता है। पन्द्रह वर्ष की संयम पर्याय वाले मुनि द्वारा चारण भावना अध्ययन का पुनरावर्तन करने से चारणलब्धि उत्पन्न होती है । सोलह से लेकर उन्नीस वर्ष की संयम पर्याय वाले मुनि द्वारा तेजोनिसर्ग, आशीविष भावना और दृष्टिविष भावना - इन ग्रन्थों का अध्ययन करने पर क्रमशः तेजोलब्धि, आशीविष लब्धि और दृष्टिविषलब्धि समुत्पन्न होती है। यहाँ उल्लेख्य है कि जिस तपोयोग विधि के प्रयोग से ये लब्धियाँ उत्पन्न होती हैं, वे विधियाँ इन अध्ययनों में प्रतिपादित हैं। बीस वर्ष का दीक्षित मुनि सभी आगमों का अध्ययन कर सकता है, क्योंकि कालक्रम से उसमें वैसा सामर्थ्य प्रकट हो जाता है। 53 निष्पत्ति- यहाँ ध्यातव्य है कि व्यवहारसूत्र के कर्त्ता आचार्य भद्रबाहुस्वामी के समय जो श्रुत साहित्य उपलब्ध था, उन्हीं का अध्ययन क्रम बताया गया है। उससे परवर्तीकाल में रचित एवं निर्यूढ़ सूत्रों का इस अध्ययन क्रम में उल्लेख नहीं किया गया है, अतः औपपातिक आदि 12 उपांगसूत्रों एवं मूलसूत्रों के अध्ययन क्रम की यहाँ विवक्षा नहीं की गई है । यद्यपि सर्वप्रथम आचार सम्बन्धी शास्त्रों का अध्ययन कर लेने पर, उसके बाद छेद सूत्रों (प्रायश्चित्त एवं अपवाद सम्बन्धी ग्रन्थों) का अध्ययन किया जाये, उनके बाद स्थानांग, समवायांग एवं भगवती सूत्र के अध्ययन कर लेने पर पहले या पीछे किसी भी क्रम से शेष सूत्रों का अध्ययन किया जा सकता है |
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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