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________________ योगोवहन : एक विमर्श... 177 कारणों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जिसके, उपस्थ रोम नहीं उगे हैं उसे आचार्य आचार प्रकल्प ( आचारांगसूत्र ) की वाचना नहीं दे। जैसे- चारित्र को धारण करने में आठ वर्ष से कम आयु का बालक असमर्थ होता है वैसे ही अपरिपक्व बुद्धि वाला मुनि आपवादिक नियमों को धारण करने में असमर्थ होता है। किन्तु जिसके उपस्थ रोम उग चुके हैं, जो 14-15 वर्ष की आयु को प्राप्त हो चुका है वह आचारांगसूत्र की वाचना ले सकता है। लगभग तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला मुनि संयम पालन आदि क्रियाओं में परिपक्व बुद्धि वाला हो जाता है। इसलिए तीन वर्ष के दीक्षित मुनि के लिए आचारांग पढ़ने का निर्देश किया है। चार वर्ष की संयम पर्याय वाला मुनि धर्म में गाढ़ मति वाला होता है । अतः वह कुतीर्थिकों के सिद्धान्तों से अपहृत नहीं होता, इसलिए चार वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले मुनि के लिए सूत्रकृतांगसूत्र पढ़ने का निर्देश किया है। पाँच वर्ष की संयम पर्याय वाला मुनि अपवादों को धारण करने योग्य होता है अर्थात द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि के अनुसार आचार मर्यादाओं का निरतिचार पालन करने में समर्थ होता है। इसलिए उसे दशाश्रुत, बृहत्कल्प और व्यवहारसूत्र की वाचना दी जा सकती है । पाँच वर्षों से ऊपर का संयम पर्याय प्रकृष्ट कहलाता है। स्थानांग और समवायांगसूत्रों के अध्ययन के बिना कोई भी मुनि श्रुत स्थविर नहीं कहा जाता तथा इस पर्याय (छः से नौ वर्ष) के बिना उनका अध्ययन भी नहीं होता, इसलिए स्थानांग और समवायांग के अध्ययन का काल छः से नौ वर्ष बताया है। इन सूत्रों से परिकर्मित मति वाले साधु को आगे व्याख्याप्रज्ञप्ति की वाचना दी जा सकती है अतः इसके लिए दस वर्ष की संयम पर्याय का निर्देश है। ग्यारह वर्ष की संयम पर्याय वाला मुनि क्षुल्लिका और महल्लिका विमानप्रविभक्ति नामक ग्रन्थ पढ़ सकने की योग्यता प्राप्त कर लेता है। बारह वर्ष की संयम पर्याय वाले मुनि द्वारा अरुणोपपात - गरुलोपपात आदि ग्रन्थों का अध्ययन इसलिए किया जा सकता है कि उनमें इन ग्रन्थों के परिणाम को उत्पन्न करने की शक्ति जागृत हो उठती है । भाष्यकार कहते हैं कि जब बारह वर्ष या उससे अधिक दीक्षा पर्याय वाला मुनि अरुणोपपात आदि ग्रन्थों के अधिष्ठायक देवताओं की साधना कर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है तब अध्ययनों के सदृश नाम वाले अरुण, वरुण, गरुड़, वेलंधर और वैश्रमण देवता दशों
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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