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176... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
न की हो या नैषेधिकी सामाचारी का पालन न किया हो तो उसके प्रायश्चित्त के लिए नीवि करें। तिर्यंच जीवों को पीड़ा दी हो तो एकासना करें। 51 दीक्षा पर्याय के अनुसार आगमों का अध्ययन क्रम
दीक्षा अंगीकार करने के पश्चात मुनि को आगम ग्रन्थों का अध्ययन (योगोद्वहन) एवं उसका वाचन (अध्यापन) कब करना चाहिए? यदि इस सन्दर्भ में पर्यावलोकन करें तो श्वेताम्बर - परम्परा के आगम साहित्य में तद्विषयक स्पष्ट वर्णन उपलब्ध होता है।
व्यवहारसूत्र में इसकी चर्चा करते हुए बतलाया गया है कि तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को आचारांगसूत्र, चार वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को सूत्रकृतांगसूत्र, पाँच वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को दशाश्रुत, बृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र, आठ वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को स्थानांग और समवायांगसूत्र, दस वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को भगवती सूत्र, ग्यारह वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को क्षुल्लिका विमान प्रविभक्ति, महल्लिका विमान प्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका और व्याख्या चूलिका, बारह वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, वेलन्धरोपपात, तेरह वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को उत्थानश्रुत, समुत्थानश्रुत, देवेन्द्र परियापनिकां और नागपरियापनिका, चौदह वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को स्वप्न भावना, पन्द्रह वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को चारण भावना, सोलह वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को तेजोनिसर्ग, सत्रह वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को आसीविष भावना, अठारह वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को दृष्टिविष भावना, उन्नीस वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण को दृष्टिवाद नामक बारहवाँ अंग तथा बीस वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण सर्वश्रुत को धारण कर सकता है अर्थात बीस वर्ष की दीक्षा पर्याय होने के बाद तो सभी आगम-सूत्र पढ़े जा सकते हैं। 52
आगमों के अध्ययन हेतु निश्चित दीक्षा पर्याय का विधान क्यों ?
आगमों का अध्ययन करने के लिए निर्धारित दीक्षा पर्याय का होना इसलिए आवश्यक है कि अमुक दीक्षा - पर्याय वाला श्रमण ही उपर्युक्त आगम सूत्रों को सम्यक प्रकार से ग्रहण कर सकता है। व्यवहारभाष्य में तत्सम्बन्धी