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________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ...175 चर्या करें तो वह महापाप का बंधन करता है। शास्त्रों में कहा भी गया है कि जो शिष्य योगोद्वहन के विपरीत कोई अनुष्ठान करता है वह उन्माद अवस्था को प्राप्त करता है, दीर्घकाल तक रोगांतक कष्ट पाता है और केवलि प्ररूपित धर्म से भी भ्रष्ट होता है। जो श्रुत की आशातना करता है, वह आशातना के परिणामस्वरूप इहलोक और परलोक में शास्त्र विद्या को प्राप्त नहीं कर सकता है और दीर्घ समय तक संसार परिभ्रमण करता है। तीर्थंकर पुरुषों के द्वारा श्रृत की आराधना के लिए जो कुछ कहा गया है उससे विपरीत करने पर जिनाज्ञा भंग और महापाप होता है। ___ योगवाही कायोत्सर्ग आदि अन्य अनुष्ठान भी अत्यन्त उपयोग पूर्वक करें। ग्रासैषणा सम्बन्धी पाँच दोषों का परिहार करते हुए आहार सेवन करें। यह मुख्यतया गणियोग की सामाचारी है। योगोद्वहन सम्बन्धी प्रायश्चित्त योगोद्वहन चर्या को सजगता पूर्वक करते हुए भी प्रमादवश या अज्ञान आदि के कारण किसी तरह की स्खलना हो जाये तो योगवाहियों को प्रायश्चित्त आते हैं। इस विषयक विस्तृत वर्णन प्रायश्चित्त विधि (खण्ड-10) में किया जाएगा। यद्यपि सामान्य प्रायश्चित्त निम्न हैं____ कालिकसूत्र का योगोद्वहन करने वाला मुनि संघट्टा ग्रहण किए बिना ही भोजन कर ले, आधाकर्मी या पूर्व से संग्रहीत किया गया भोजन करें, असमय में मलोत्सर्ग करें, वसति का प्रतिलेखन नहीं करें, एकाकी ही वसति से 100 कदम आगे भ्रमण कर लें, कषायों का पोषण करें, व्रतों का पोषण नहीं करें, अभ्याख्यान, पैशुन्य या परपरिवाद करें, पुस्तक को जमीन पर रखे या इसी तरह की अन्य क्रियाओं के द्वारा ज्ञान की आशातना करें, रजोहरण एवं चोलपट्टे को अपने हाथों से भूमि पर न रखकर ऊपर से ही भूमि पर डाल दें, दोनों समय खड़े होकर आवश्यक क्रिया न करें, प्रात:काल स्वाध्याय न करें, उपधि एवं भोजन भूमि की प्रतिलेखना न करें, स्वाध्याय भूमि का प्रमादवश प्रमार्जन न करें तो इन सभी अतिचारों से मुक्त होने के लिए योगवाही प्रायश्चित्त के रूप में उपवास करें। इसी प्रकार दरवाजे को प्रमार्जित किए तो प्रायश्चित्त के रूप में आयंबिल करें। आवश्यक क्रिया समय पर न की हो, गोचरी भी उचित समय
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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