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________________ 174... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण गया हो तो अपवादतः जिस घृत आदि में से तीन बार पकवान बनाया जा चुका है, उसके बाद जो घी शेष बचा हो, उसमें चौथी बार बनाया गया पकवान ग्रहण करना कल्पता है अथवा तीन बार पकवान बनने के बाद बचे हुए तेल आदि में पीछे से बनाई गई मिठाई अथवा पूआ आदि बन जाने के पश्चात उस घृत पात्र में बनाया गया पकवान भी ग्रहण करना कल्पता है। सामान्यतया जिस योगवाही के द्वारा गृहस्थ के हाथ आदि विगय द्रव्यों से व्याप्त देखे गये हों अथवा उन्हें आँखों से अंजन पोंछते हुए अथवा धोयी हुई आँखों को सुखाते हुए देखा गया हो, तो वह ऐसे दायकों से भिक्षा न लें। तात्पर्य है कि एक ही दाता किसी योगवाही को आहार देने के लिए शुद्ध होता है और किसी के लिए अशुद्ध । इसीलिए 'अमुक दूषित हैं' ऐसा परस्पर में नहीं कहना चाहिए। योगवाही की विशिष्ट सामाचारी 1. परम्परागत सामाचारी के अनुसार योगवाही को बत्तीस ग्रास से अधिक नहीं खाना चाहिए। 2. योगवाही भिक्षा प्राप्ति के लिए ढाई कोस से अधिक परिभ्रमण न करें। 3. सशक्त योगवाही शरीर ढकने के लिए तीन वस्त्रों का ही उपयोग करें तथा निर्बल योगवाही समाधि न रहने तक चार वस्त्रों का भी उपयोग कर सकता है। योगवाही दिन के प्रथम प्रहर के अन्त में प्रवेदन विधि और संघट्ट विधि अवश्य करें। 4. द्वितीय प्रहर के अन्त में भिक्षाचर्या सम्बन्धी कृत्य करें। 5. योगवाही वाचनाचार्य से संस्पृष्ट वस्त्र को दो, तीन, चार दिन या स्वयं की समाधि के अनुसार इससे अधिक दिनों तक भी पहन सकता है। 6. योगवाही शीतादि सर्व प्रकार के परीषहों को समभाव पूर्वक सहन करें। 7. योगवाही मुनियों के साथ साध्वियाँ भी उद्देशादि क्रिया कर रही हों तो वे चोलपट्ट धारण करें, नहीं तो अग्रभाग ढ़कना ही आवश्यक है, परन्तु योगोद्वाहिनी साध्वियों को चद्दर ओढ़कर ही योगक्रिया करनी चाहिए। समाहारतः इस अनुष्ठान को आगम विहित और गीतार्थ उपदिष्ट विधि के अनुसार वाचनाचार्य की अनुमति पूर्वक शंका रहित होकर करना चाहिए। यदि कोई शिष्य आगम सूत्रों को स्वयं ही पढ़ लें अथवा विपरीत विधि पूर्वक योग
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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