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________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ...173 गुड़ की चासनी, गुलवाणी- थोड़े आटे को घी में सेककर, उसमें गुड़ का पानी डालकर बनायी गई वस्तु- राब, शक्कर-मिश्री, शक्कर का बाट, खीर-दूध में थोड़े से चावल डालकर बनाया गया खाद्य पदार्थ, दूधपाक, दुग्धशाटिका-सूखा नारियल एवं द्राक्ष डालकर पकाया गया दूध, कर्करियग- कर्कर आवाज करने वाली वस्तु, मोरिंडक- तिल आदि के मोदक, गुलधाणा- गुड़ और घी की चासनी बनाकर उसमें धान्य विशेष डालकर बनाया गया पदार्थ, कुल्लरि- आटे से बनाया गया एक तरह का मिष्ठान्न, सत्तु- भुंजे हुए जौ आदि का चूर्ण, करबा-दधि निष्पन्न चावल, घोल- वस्त्र से छाना हआ दही, श्रीखंड- दही में से पानी निकालकर, शक्कर डालकर एवं छानकर बनाया गया पदार्थ, तिल पपड़ी-तिल से बनी हुई खाद्य वस्तु- ये सभी पदार्थ संस्कारित हों तो योगवाही ग्रहण कर सकता है। आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार तिल का चूर्ण, तिल का पिण्ड, तिल का खोल दूसरे दिन ही लेना कल्पता है। गृहस्थ के द्वारा निम्न वस्तुएँ स्वयं के लिए निर्मित की गई हों तो गणियोगी को लेना कल्पता है। जैसे वीसंदण- दही की तर और आटे से बनता एक प्रकार का खाद्य मिष्ठान्न, भरोलग- घृत और कच्चे चावल से निर्मित मुठिया आदि, नन्दिहलि- एक तरह का खाद्य पदार्थ आदि। इनके अतिरिक्त छोटी हरडों का पानी, द्राक्ष का पानी, इमली का पानी, सौंठ, कालीमिर्च आदि उसी दिन के हों तो मुनि को लेना कल्पता है। यदि दही और चावल को मिश्रित कर संस्कारित किया गया पदार्थ और पूरण पूडी उसी दिन की बनी हों, तो गणियोगी के लिए ग्रहण करना कल्पता है, किन्तु दूसरे दिन ये ही पदार्थ अकल्प्य हो जाते हैं। विधिमार्गप्रपा के मतानुसार भगवतीसूत्र के योग करते समय षष्ठ योग लगने के पूर्व तक छाछ की कढ़ी एवं छाछ द्वारा निर्मित पदार्थ ग्रहण करने नहीं कल्पते हैं, किन्तु षष्ठयोग लगने के पश्चात अच्छी तरह से बनाई गई छाछ के पदार्थ लेने कल्पते हैं। आचारदिनकर के अभिप्राय से छाछ एवं घी (निवियाता घी) में पकी हुई सब्जी सदैव कल्प्य है। इसी तरह मार्जित करके बनाए गए व्यंजन, यदि उनमें ऊपर से घी न डाला गया हो, तो वे सभी भी कल्प्य है। इस प्रकार पकाए हुए रस रहित पकवान भी योगवाही मुनियों को लेना कल्पता है। गणियोग के दिनों में किसी योगवाही का शारीरिक सामर्थ्य शिथिल हो
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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