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योगोद्वहन : एक विमर्श ...171 • यदि दाता के शरीर का कोई भी अवयव उक्त नौ विगयों से स्पर्श कर रहा हो, तो भी गणियोगी उसके द्वारा भोजन-पानी ग्रहण न करें। यदि गृहस्थ दाता के शरीर से नौ विगय का स्पर्श एक दूसरे से संस्पर्शित तीसरे व्यक्ति से हो रहा हो, तो प्रथम व्यक्ति के हाथ से भक्त-पानादि ग्रहण किया जा सकता है।
• गणियोग करने वाला मुनि, घृत-तेल आदि से मालिश किया हुआ पुरुष अथवा स्त्री जिस आहार आदि को स्पर्श कर रहे हों वह ग्रहण न करें। इससे पूर्वगृहीत भोजन पानी दूषित हो जाता है।
• गृहस्थ दाता के शरीर का कोई भी अवयव अकल्पित द्रव्य से युक्त अथवा स्पर्शित हो रहा हो, तो उस दिन उसके हाथ से भोजन आदि ग्रहण न करें, किन्तु दूसरे दिन उसके द्वारा भोजनादि ग्रहण कर सकते हैं।
• यदि आहार दाता गृहिणी के केश आदि गीले हों तो योगवाही उससे आहारादि ग्रहण न करें।
• कोई दात्री तेल मिश्रित कुंकुम द्वारा शरीर को पीतवर्णी कर रही हो, तो गणियोगी उस दिन उसके हाथ से भिक्षा ग्रहण न करें।
• यदि देय पदार्थ स्थिर कपाट आदि में रखे हुए हों और अकल्पित द्रव्य उससे स्पर्शित हो रहे हों, तब भी उस कपाट से बाहर करके दिया जाने वाला भोजन गणियोगी के लिए शुद्ध है किन्तु अस्थिर कपाट आदि अकल्पित द्रव्य से स्पर्शित हों, तो उसके ऊपर से नीचे उतारकर दिया जाने वाला भोजन-पानी आदि गणियोगी के लिए शुद्ध नहीं होता है।
• यदि देय पदार्थ एक के ऊपर एक ऐसे चार-पाँच बर्तन में रखे हए हों या इसी प्रकार कोई बर्तन माले (टांड) आदि पर रखे हुए हों या नीचे तलघर में रखे हों, तो योगवाही उन बर्तनों से दी जाने वाली भिक्षा ग्रहण न करें। एक बर्तन के साथ दूसरा बर्तन रखा हो अथवा वे तिर्यक दिशा में किंचित दूरी पर रखे हुए हों तो उन बर्तनों से आहार ग्रहण कर सकते हैं। स्पष्ट है कि गणियोगवाही एक के ऊपर एक ऐसे दो-तीन बर्तनों से दी गई भिक्षा ही ग्रहण कर सकता है। इससे अधिक ऊपर रखे गए एवं अधिक दूरी पर रखे गए बर्तनों से दी गई भिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता है।
• यदि देने योग्य भोजन के पात्रों का ऊँचा ढेर लगा हुआ हो, वहाँ अकल्पित वस्तु से युक्त पात्र का सातवें पात्र तक भी स्पर्श हो रहा हो, तब भी गणियोगवाही