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170... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण गीली चमड़ी का स्पर्श होने पर योगवाही द्वारा ग्रहण किया गया भोजन-पानी उसके लिए दूषित हो जाता है, किन्तु सूखे चमड़े आदि का स्पर्श होने पर गृहीत आहार अशुद्ध नहीं होता है। ____ गोशालक अध्ययन की अनुज्ञा हो जाने के पश्चात भी भिक्षार्थ घूमते हुए बाल, सूखी चमड़ी, हड्डी, विष्टा आदि का स्पर्श हो जाये तो भोजन-पानी दूषित नहीं होता है, किन्तु स्पर्शादि के कारण हुई विराधना को दूर करने के लिए प्रवेदन के समय कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• गणियोगवाही द्वारा गृहीत आहार में आठ अंगुल से अधिक परिमाण वाला केश दिख जाये तो वह भोजन उसके लिए अकल्प्य हो जाता है।
• गणियोगी द्वारा भिक्षाटन करते समय आधाकर्मी दोष वाला आहार ग्रहण कर लिया जाये तथा मनुष्य और तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय का स्पर्श हो जाये तो गृहीत भोजन-पानी उसके लिए अग्राह्य हो जाता है।
• यदि झोली, पात्र या पात्रबंध पूर्व दिन के भोजन आदि से अंश मात्र भी खरडे हुए रह गये हों तो दूसरे दिन जल से स्वच्छ करने के बाद ही उसमें आहार आदि ग्रहण करें, अन्यथा गृहीत भोजन-पानी दूषित हो जाता है।
• यदि गणियोगवाही के पात्र आधाकर्मादि से दुषित हो जाये तो वह आहार के लिए अधिकतम चार पात्र ले सकता है, नियम से तीन पात्र ग्रहण करने का ही विधान है।
• यदि गृहस्थ दाता का भोजन पात्र शुद्ध है और उसके हाथ आदि भी शुद्ध हैं फिर भी पात्र एवं हाथ आदि गीले हों, तो गीले हाथ आदि से भिक्षा ग्रहण कर सकता है, किन्तु भोजन मंडली में आने के बाद आई हाथादि से ग्रहण की गई भिक्षा पर स्थित जल के अंशादि सूख जायें, उसके पश्चात योगवाही कायोत्सर्ग करके वह आहार ग्रहण करें।
• पूर्वाचार्यों की सामाचारी के अनुसार भगवती सूत्र के योग में षष्ठ योग के पूर्व तक दस प्रकार के घृत आदि विगय द्रव्यों से और षष्ठ योग प्रारम्भ होने पर पकवान को छोड़कर शेष नौ विगय द्रव्यों से जिस दाता के हाथ स्पर्श कर रहे हों, खरड़े हुए हों, लीपे हुए हों, उसके द्वारा भोजन-पानी ग्रहण न करें। क्योंकि विगय संस्पृष्ट व्यक्ति के हाथ से गृहीत भोजन गणियोगी के लिए अकल्प्य माना गया है।