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योगोद्वहन : एक विमर्श ... 169 गर्हित आहार एवं मृत क्रिया ( मृत्युभोज) के निमित्त बनाया गया भोजन आदि ग्रहण न करें।
• जिस पात्र के द्वारा देवता आदि को आहार सामग्री अर्पित की गई हो उससे संस्पर्शित आहार और उस आहार से संस्पर्शित अन्य आहार भी ग्रहण न करें, वह गणिवाही के लिए अग्राह्य है। इसी प्रकार विगय से संस्पर्शित एवं विगय युक्त आहार भी ग्रहण न करें।
• गणियोगी अकृतयोगी के साथ भिक्षाटन आदि न करें और नगर के बाह्य भाग में मलोत्सर्ग हेतु भी न जायें ।
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गुर्वानुमति के बिना उपधि प्रक्षालन आदि न करें।
• कोई दाता पके हुए भोजन के अतिरिक्त विगय युक्त पदार्थ को भिक्षा रूप में दें तो गणियोगी उसे ग्रहण न करें । दाता का शरीर सचित्त जल आदि से गीला हो अथवा उसके देह आदि से कुत्ता, बिल्ली, मांसभक्षक पक्षी एवं बछड़े का संस्पर्श होते हुए देख लिया हो, तो उसके हाथ से आहार आदि ग्रहण न करें। इसी प्रकार गीली चमड़ी आदि का संस्पर्श मात्र होने पर भी उस दाता से भिक्षा न लें।
• यदि नपुंसक या वेश्या के हाथ दूध, तेल, घी से युक्त हों, तो योगवाही उनका स्पर्श न करें और उनसे स्पर्शित भिक्षा का भी वर्जन करें ।
• यदि कोई गृहिणी उसी दिन के मक्खन से युक्त काजल को आँखों में लगाकर भिक्षा दें रही हो तो उससे ग्रहण न करें। यदि वह काजल दो-तीन दिन का हो तो उसके हाथ से भिक्षा ली जा सकती है।
• यदि दात्री ने पूर्व दिन के मक्खन को शरीर पर लगाकर उसी दिन अंजन किया हो, तो उसके हाथ से भोजन - पानी ग्रहण न करें ।
• यदि स्तनपान कराती हुई स्त्री अपने बालक को स्तनपान छुड़ाकर भिक्षा दे, तो गणियोगी मुनि उस भिक्षा को ग्रहण न करें। यदि वह स्तनपान नहीं करवा रही हो अथवा स्तनपान करवाते हुए स्तन सूख गया हो तो उसके द्वारा दी गई भिक्षा ग्राह्य है। इसी तरह गाय आदि के विषय में भी समझना चाहिए।
• गणियोगी द्वारा भिक्षाटन करते समय गाय, हाथी आदि की गीली विष्टा का उससे स्पर्श हो जाये तो ग्रहण किया गया भोजन - पानी उसके लिए दूषित हो जाता है, किन्तु इन्हीं जीवों से सम्बन्धित शुष्क विष्टा (गोबर आदि) का स्पर्श होने पर हस्तगृहीत भोजन अशुद्ध नहीं होता है। इसी प्रकार गीली हड्डी और