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168... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ऊपर एक ऐसे दो पात्र रख सकते हैं किन्तु उसके ऊपर तीसरा-चौथा आदि पात्र न रखें। बैठे हुए साधु को खड़ा हुआ साधु भोजन आदि न दें, संघट्टा लेते समय बैठे-बैठे या खड़े-खड़े निद्रा न लें, भोजन में केश न आ जाए, इसका पूर्ण विवेक रखें, अन्यथा संघट्टा नष्ट हो जाता है। ऊबड़-खाबड़ भूमि पर संघट्टा न लें। यदि लिया जाए तो संघट्टित वस्तुएँ संघट्टा से बाहर हो जाती है, फिर पुनः संघट्टा ग्रहण करना होता है।
सामान्यतया कालिक-उत्कालिक सभी सूत्रों के योगों में उपर्युक्त चर्या का पालन करना चाहिए। गणियोगवाही की कल्प्याकल्प्य सामाचारी
__पांचवाँ अंग आगम भगवती सूत्र का योगोद्वहन करने वाला मुनि गणियोगवाही कहलाता है। इस सूत्र का तपोनुष्ठान करते समय गणियोगी को भिक्षा सम्बन्धी अनेक सावधानियाँ रखने का निर्देश दिया गया है क्योंकि भगवतीसूत्र का अध्ययन (योग) काल एवं चर्या की अपेक्षा कठिनतर है। दूसरे, इस सूत्र के योग पूर्ण होने तक उसे 'गणिपद' पर भी आरूढ़ किया जाता है।
तिलकाचार्य सामाचारी48 विधिमार्गप्रपा49 एवं आचार दिनकर50 आदि में उल्लिखित गणियोगवाही की कल्प्याकल्प्य सामाचारी इस प्रकार है- .
• गणियोगवाही मुनि को यह ध्यान रखना चाहिए कि भिक्षाटन करते समय यदि अपने समानवर्गी योगवाही से उसके शरीर आदि का स्पर्श हो जाये तो उसके हाथ में ग्रहण किया गया आहार पानी दूषित नहीं होता है, किन्तु अन्य मुनियों या गृहस्थादि से संस्पर्श हो जाये तो गृहीत भोजन पानी उसके लिए अग्राह्य हो जाता है।
• गणियोगवाही सिलाई, पात्र लेप आदि की क्रिया वाचनाचार्य की अनुज्ञा से करें।
• गणियोग करते समय वसति के चारों ओर सौ-सौ हाथ पर्यन्त मनुष्य की विष्टा पड़ी हुई हो तो अस्वाध्याय होता है और वह स्थान जब तक विष्टा से शुद्ध न हो तब तक वहाँ स्वाध्याय करना निषिद्ध है, परन्तु मनुष्य का रूधिर आदि गिरा हुआ हो तो अस्वाध्याय नहीं होता है।
• गणियोगी देवी-देवता को समर्पित करने के लिए बनाया गया आहार,