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योगोद्वहन : एक विमर्श ...167 स्पर्श न हो तो भी दिन में एक बार ‘दंत ओहड़ावणियं करेमि काउस्सग्गं' पूर्वक 'अन्नत्थसूत्र' बोलकर कायोत्सर्ग में एक नमस्कार मन्त्र का स्मरण करें।
• योगवाही दिन और रात्रि की प्रथम एवं अन्तिम दोनों पौरुषियों में सूत्रअर्थ का पुनरावर्तन करें।
• जिस सूत्र का योग चल रहा हो उसके अतिरिक्त अन्य अपठित सूत्रों का स्वाध्याय न करें और पूर्व पठित पाठों को विस्मृत न करें।
• वह सदैव अप्रमत्त रहें और पात्र, उपधि आदि उपकरणों की दिन की प्रथम पौरुषी के अन्त में एवं चतुर्थ पौरुषी के प्रारम्भ में ऐसे दो बार प्रतिलेखना अवश्य करें।
• योगवाही अल्प भाषण करें। मन्द स्वर में बोलें। काम, क्रोध आदि का त्याग करें। पंचमहाव्रत का दृढ़ता पूर्वक पालन करें। संघ या समुदाय का विरोध न करें। पात्र में रहे हुए अन्न को झूठा न छोड़ें और न ही वमन आदि करें। संस्तारक, वस्त्र एवं आसन आवश्यकता अनुसार ग्रहण करें। अत्यन्त सावधानी पूर्वक कालग्रहण करके स्वाध्याय करें।
• अकाल में स्वाध्याय और कालग्रहण न करें और असमय (रात्रिकाल) में मल का उत्सर्ग न करें।
• अकृतयोगी द्वारा लाया हुआ आहार-पानी ग्रहण न करें, उनका संघट्टा नहीं करें और उनके पाट, शय्या एवं आसन आदि का उपयोग भी न करें।
• अकृतयोगी से अपनी उपधि एवं शय्या की प्रतिलेखना न करवाएं। शरीर की चिकित्सा न स्वयं करें और न अन्य से करवाएँ।
• वर्षा एवं महावायु के समय भिक्षा आदि के लिए वसति से बाहर न जाएं। . . कालिक योगवाही परिष्कृत भूमि पर ही संघट्टा ग्रहण करें, इससे भिन्न स्थान पर लिये गये संघट्टे वाले पात्रादि में गृहीत आहार-पानी उनके लिए अग्राह्य हो जाता है।
• योगवाही शरीर को इधर-उधर हिलाते हुए, विकथा करते हुए या कलह की भाँति बातचीत करते हुए संघट्टा ग्रहण न करें, अन्यथा वह संघट्टा चला जाता है।
. योगवाही आहार-पानी का सेवन करते समय गिरे हुए भोजन-पानी आदि का स्पर्श न करें, एक के ऊपर एक से अधिक पात्र न रखें यानी एक के