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166... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
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उद्देशक और अध्ययनों की अनुज्ञा दिन की चरम पौरुषी तथा रात्रि की प्रथम या अन्तिम पौरुषी में की जाती है ।
• निशीथ आदि आगाढ़ योगों की अनुज्ञा दिन की प्रथम और अन्तिम पौरुषी में की जाती है, रात्रि में नहीं ।
दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, क्षुल्लककल्पश्रुत, औपपातिक आदि की अनुज्ञा वैकल्पिक है - दिन की प्रथम पौरूषी में भी हो सकती है और अन्तिम पौरुषी में भी हो सकती है। 44
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योगवाही के लिए विधि - निषेध सामाचारी
तिलकाचार्य सामाचारी 45 विधिमार्गप्रपा 46 आचारदिनकर 47 आदि में योगवाही मुनि के लिए करणीय-अकरणीय सामाचारी को स्पष्ट करते हुए कहा गया है
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योगवाही रात्रिक प्रतिक्रमण के समय प्रतिदिन नवकारसी का प्रत्याख्यान करें। प्रतिदिन जो भी तप करना हो उसे गुरुमुख से ही ग्रहण करें। • रात्रि के प्रथम और अन्तिम प्रहर में सभी मुनियों को हमेशा जागृत रहना परन्तु योगवाही मुनि प्रतिक्षण जागृत रहें।
चाहिए,
• योगवाही मुनियों को योग काल में विकथा, शोक, हँसी, कलह आदि नहीं करना चाहिए।
• सामान्य मुनि को अकेले सौ कदम ( पच्चीस धनुष परिमाण भूमि) से अधिक नहीं जाना चाहिए, तब योगवाही के लिए एकाकी आवागमन का प्रश्न ही नहीं उठता है? वह सौ कदम के बाहर अकेला न जाए, अन्य मुनि को हमेशा साथ लेकर ही जाए। सौ कदम से अधिक दूर जाने पर उसे आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• योगवाही भिक्षा ग्रहण हेतु भी अकेले सौ कदम से अधिक न जाएं, अन्यथा हाथ में रहा हुआ भोजन - पानी उनके लिए ग्राह्य नहीं होता ।
• आगाढ़सूत्र के योगवाही सिलाई करना, लेप करना, उपकरण बनाना आदि कार्य न करें। सामान्यतया सभी योगों में और विशेष रूप से आगाढ़ योगों में योगवाही को उक्त कार्य नहीं करने चाहिए।
• आगाढ़सूत्र के योगवाही तांबा, सीसा, कांसा, लोहा, रांगा, रोम, नख, चर्म आदि का स्पर्श न करें और स्पर्श होने पर कायोत्सर्ग करें। इन धातुओं का