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________________ योगोद्वहन : एक विमर्श ... 161 170. किन्हीं सूत्रों के योग में श्रुतस्कन्ध का समुद्देश एवं अनुज्ञा दो दिन में होती है तथा कुछ सूत्रों में समुद्देश एवं अनुज्ञा एक दिन में होती है। उसका मुख्य कारण सूत्र का अपना वैशिष्ट्य एवं ज्ञानी की तद्विषयक आज्ञा है । 171. जैन परम्परा में सामायिक आदि धार्मिक क्रियाएँ करते समय मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन किया ही जाता है, योग क्रिया में भी उसी आचरणा का पालन करते हुए उद्देशादि क्रिया के पूर्व मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन किया जाता है। आगमसूत्र के उद्देशादि की क्रिया पूर्ण होने पर वायणा (वाचना) के आदेश नहीं होते हैं, किन्तु समुद्देश की क्रिया पूर्ण होने पर वाणा के दो आदेश लिए जाते हैं। = आठ 172. भगवतीसूत्र के योगोद्वहन के सम्बन्ध में 'अट्ठम योग' 'छट्ठयोग' शब्दों का प्रयोग किया गया है। विधिमार्गप्रपा के अनुसार अट्ठम जोग दिन का संलग्न तप, जिसमें सात दिन नीवि एवं आठवें दिन आयंबिल (अन्य मतानुसार 8 नीवि + 1 आयंबिल) और छट्ठ जोग = छह दिन का संलग्न तप, जिसमें 5 दिन नीवि + 1 आयंबिल ( अन्य मतानुसार 6 नीवि + 1 आयंबिल) होता है। 173. वर्तमान में प्रादोषिक आदि चारों काल ग्रहण पौषधशाला ( उपाश्रय) में ही लिए जाते हैं। पूर्वकाल में व्याघातिक (शाम का) काल ग्रहण पौषधशाला में लिया जाता था, शेष तीनों बाहर जाकर लिए जाते थे। 174. इस कृति में विधिमार्गप्रपा के अनुसार कप्पतिप्प ( कल्पक्षेत्र ) सामाचारी दर्शायी गई है। पूज्य आचार्य कीर्तियशसूरीजी म.सा. के सुयोग्य शिष्य पूज्य रत्नयशविजयजी म.सा. के अनुसार तपागच्छ परम्परा में यह सामाचारी कल्प अर्थात कपड़ा सांधे (सीले) हुए न पहनना, अशुचि वाले न पहनना, टूटे-फूटे पात्रों का उपयोग न करना आदि प्रचलित है। 175. तपागच्छ में महानिशीथ आदि कुछ सूत्रों को छोड़कर शेष सभी आगमों के योग काल में एकांतर आयंबिल + नीवि और पाँच तिथि को आयंबिल करने की परम्परा है। 176. योगोद्वहन की विधियों में प्रयुक्त 'तिविहेण' शब्द आगमिक है। इस शब्द का अर्थ त्रिकरण योग से यानी मन-वचन-काया से वंदन के अर्थ में है। यहाँ वंदन से तात्पर्य खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन करना है। सामान्य खमासमण में ‘तिविहेण' शब्द का प्रयोग नहीं होता, किन्तु कुछ स्थानों
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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